
फतेहपुर । अच्छे उत्पादन के लिए कीट एवं रोगो पर समय रहते नियंत्रण जरुरी है ।
यह जानकारी देते हुए जिला उद्यान अधिकारी जिला ने बताया कि प्रदेश में आलू के अच्छे उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के कीट एवं रोगों का उचित समय पर नियंत्रण नितान्त आवश्यक है । आलू की फसल पिछेता झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है । प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूँदा बॉदी एवं नम वातावरण में पिछेता झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुँचती है । ऐसी परिस्थितियों में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उ०प्र० द्वारा आलू,उत्पादकों को सलाह दी गई है कि आलू की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने हेतु रक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ।
पिछेता झुलसा रोग का प्रकोप निचली पत्तियों से प्रारम्भ होता है । जिसके फलस्वरूप गहरे भूरे/काले रंग के कुण्डलाकार छल्लेनुमा धब्बे बनते है । जो बाद में बीच में सूखकर टूट जाते है प्रभावित निचली पत्तियों सूखकर गिर जाती है । इन धब्बों के बीच में कुण्डलाकार आकृति दिखाई देती है । पिछेता झुलसा रोग के प्रकोप से आलू की फसल को विशेष क्षति होती है इस रोग से पत्तियों सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती हैं । जो तीव्रगति से फैलती हैं और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है । बदली युक्त 90 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं कम तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है । आलू की फसल को पिछेता झुलसा रोग से बचाने के लिए सभी किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे मैन्कोजेब/ प्रोपीनेट /क्लोरोथेलोनील युक्त फफूदनाशक दवा का रोग सुग्राही किस्मों पर 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0-2.5 किलोग्राम दवा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव तुरन्त करें साथ ही साथ यह भी सलाह दी जाती है कि जिन खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी हो उनमें से किसी भी फंफूद नाशक- साईमोक्सेनिल + मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से अथवा फेनोमिडोन मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से अथवा डाईमेथेमार्फ 1.0 किलोग्राम + मैन्कोजेब का 2.0 किलोग्राम (कुल मिश्रण 3.0 किलोग्राम) प्रति हेक्टेयर (1000 ली0 पानी) की दर से छिड़काव करें ।
फफूंदनाशक को 10 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है । लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढाया जा सकता है । किसान भाइयों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि एक ही फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव न करें एवं बारिश के दौरान फफूंदनाशक के साथ स्टिीकर को 0.1 प्रतिशत की दर (1.0 मिली० प्रति ली० पानी के साथ मिलाकर प्रयोग करें ।