
हाऊस वाइफ हूँ ।
स्वयं मे सीमित कहाँ
हाउस वाइफ हूँ
नहीं बनी रविवार मेरे लिए क्योंकि राँबर्ट की खास हूँ
हाउस वाइफ हूँ
पतिदेव की झकसफेद-
कमीज की
वह राज हूँ
बच्चों की ताज हूँ…..
हाउस वाइफ हूँ!!
दादी को भांति कड़क-अदरक-कुटी-चाय
और बैठक को सौम्य गुलदस्ते
बस,
वाशिंग मशीन से होती रसोई से बैठक तक
रेलगाड़ी- सी घुमती जिदंगी मेरी
क्योंकि
हाउस वाइफ हूँ
खुद को ढूंढ रही कहाँ??
घर आये मेहमानों की ख्याल हूँ
पकौड़ो संग चाय की मिठास हूँ
हाँ,
हाउस वाइफ हूँ
मेरे घर में
मेरी पंसद मन की अलमारी में कैद हैं??
मेरी किस्मत मे थकना नहीं
हाथों की लकीरों मे
अनसुनी वह बात है!
ताजी-सब्जियों की छौंक लगा
बच्चों के कमरे में
‘पंखे बंद’ कर आती
अरे माँ हूँ न
इतनी- सी बात
मन पगली समझ ना पाती!!
कपडे़ की खरीदारी मे
सबसे सस्ती साडी मेरी होतीं
पतिदेव की बजट
मेरी नजरों में टिकीं रहतीं
थोड़े मे ही ज्यादा करना
अम्मा के आंगन पढी थीं
दाल से तारका(सब्जी) बना लो
कुशल-गृहणी की नीति कभी अम्मा ने आजमाई थीं
उपेक्षित होती
खोटी-खडीं सुन लेतीं
एक लोटा पानी से
फिर तुलसी- माँ को सिंच लेतीं
क्योंकि आंगन की वेदी हूँ
हाँ,
बहुमूल्य-बहु मे छुपी थोड़ी बहुत बेटी हूँ
गर्म-रोटी के तावे संग हाथों को कभी- कभी सेंक लेतीं
दूध की उफान मे,
थोड़ी-सी केसर मिला
चुपके -चुपके उम्र-मकान पे खर्च कर देतीं
‘अपना घर बनाने में’
सालों गुजार देता
क्योंकि अर्धांगिनी हूँ
दो पीढियों के बीच की अनकही-
कड़ी हूँ
हाउस वाइफ हूँ
मिर्ची की तीखापन समेटे हुए
एक हल्की -सी
मुस्कान हूँ
हाँ मानती हूँ
चौबीस घंटे की डयूटी हूँ
क्योंकि
हाउस वाइफ हूँ मैं !
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अभिलाषा नंदनी
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ।
भारत