
हाँ,
‘मैं जिविंत हूँ’
अपनें सुख- दूख सांझा करती
अपनें अनुभव समेटती
अपनें अपक्व कविताओ मे,
शिशुओं सा कोमल हृदय रखें,
मेरी कविताएं
अंधेरों की नभ मे
हौसला भरती मेरी कविताएं
कैसे न लिखु, रचनाओं में खुद को रचती
मेरी अनमोल-सी कविताएं
मायका का आंगन
पिया की ठिठोली
जज्बातों का सुमन
अर्पित करती खिलखिलाकर बांहों में घेरती
मेरी अनकही- सी कविताएं
भावनाओं की मोती
माँ की रोटी
यादों में खिचें-ताने मेरी बातूनी- सी कविताएं
कैसे न लिखू
तूझें मै,
‘कविता’
तेरे बिना अधूरी
अभिलाषा की परिभाषा,
अभिव्यक्ति मन की
कहती तू सुनती
चुपके -चुपके
जीवन पहेली सुलझाती मेरी सखीं
मेरे जिविंत होने का प्रमाण-देती
मेरी अनोखी कविताएं!
अभिलाषा नंदनी।