
हे राम,
सिया बनकर क्यों देतीं रहूं अग्निपरीक्षा जन्मों जन्म तक
हे कृष्ण,
मीरा कभी राधे बनकर घुटती रहूं क्यों सृष्टि पर!!
हे वचन प्रिय दशरथ बोलों
क्या कसुर था कैकेयी का
अपने वचनों से खुद लड़खड़ाये
पाप मढ़े कैकयी के मस्तक पर!!
बुद्ध की बुद्धि
क्यों छली गई
छोडकर गये नवकोपल संग यशोधरा को!!
अहिल्या की गलती थीं क्या
क्यों रोतीं हैं वृंदा तुलसी बनकर
कर्म की जलती ताप मे सहकर
नवदुर्गा रणचण्डी बन जाती क्यों
नन्ही नन्ही कन्या
नौ- रुप मे आंगन मे आती
भ्रूण की कन्या
क्यों दमतोड़ जाती
हे राम ,
धरातल पे स्त्री
कागज़ मे क्यों सिमट रही
मिट्टी की दुर्गा दुर्गम बन आती
स्त्रीत्व क्यों पिड़ा मे चुभके माला सी मोहक मौन रहतीं
कल नहीं तो अब ही बोलों
सिया की चुप्पी तोड़ों!
अभिलाषा नंदनी