
फतेहपुर ब्यूरो रवीन्द्र त्रिपाठी
फतेहपुर,14 मई । हार कितनी पीड़ा दायक होती है और खास तौर पर सत्ता पक्ष के प्रत्याशियों को जिन्हें प्रशासन काइ हर तरह से सपोर्ट मिलता रहा हो रैली निकालने चुनाव आयोग के निर्देशों के उलंघन को अनदेखी करने वाले जिला प्रशासन को ही भाजपाइयों कटघरे में खड़ा करके धरने में बैठ गए साथ में भाजपा के पूर्व विधायक कद्दावर नेता भी धरने में सहभागी बन गए । अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना देना क्या यह संदेश देना है कि बेइमानी हो सकती है । ऐसा हुआ फतेहपुर में जिसे जिला प्रशासन ने एक सिरे से नकार दिया और भाजपाइयों के आरोपों को हार की खीझ बताया ।नगर पालिका परिषद फतेहपुर के चुनाव परिणाम को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं की उत्तेजना व गुस्सा मेहनत के बाद अनापेक्षित परिणाम को लेकर लाजिमी था । वैसे चुनावी समीकरण जो हालात खड़े हुए हैं उसी ओर इशारा परिणामों का कर रहे थे । लेकिन आम कार्यकर्ता तो भोला होता है । वह बिना लाग लपेट के बस काम करता है और उसे इस बात की सुध ही नहीं रहती कि आखिर खेला कहां हो रहा है ?
पूर्व विधायक विक्रम सिंह का विरोध का अपना अलग अंदाज है लेकिन क्या यह तरीका सही है या गलत ?
इसे वो ही जाने । अपनी ही सरकार में बेईमानी व भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर एक बार फिर धरना देना कई सवाल खड़े कर रहा है ?
सवाल तो तय है कि जब भाजपा प्रत्याशी लीड पर थे तब समाजवादी पार्टी मानसिकता के कार्यकर्ताओं पर उंगली क्यों नहीं उठी ?
बेईमानी और भ्रष्टाचार की बात तब आई जब सपा प्रत्याशी लीड पर आए और एक समय ऐसा लगा जब चुनाव समाजवादी पार्टी नगरपालिका परिषद फतेहपुर का जीत जाएगी । मतगणना स्थल पर जिस तरह से बखेड़ा खड़ा हुआ ।
आरोप-प्रत्यारोप हुए उसे किसी भी दशा में सही नहीं कहा जा सकता । यह पहला मौका रहा जब मीडिया को भी एक तरह से पर्दे के पीछे ही रखा गया । उसकी हद बांध दी गई ।
सवाल तो यहां भी खड़ा होता है कि अखिर यह सब करने की जरूरत क्या थी ?
इसके पीछे किन लोगों की मानसिकता थी और वह करना क्या चाह रहे थे । जब चुनाव परिणाम समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की जीत का आया तो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता उसी प्रशासन व पुलिस के मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे । जो चुनाव से पहले या मतदान के दिन तक पुलिसिया सख्ती पर अठखेलियां कर रहे थे । उन्हें मजा आ रहा था कि जीत की राह यहीं से गुजरेगी । चुनाव हार-जीत के लिए ही है । जीतेगा कोई एक ही लेकिन उसके पीछे जीतने वाले प्रत्याशी से लेकर हारने वालों तक के लिए अपनी कमियां एवं आत्ममंथन करने का अवसर मिलता है । भाजपा के लिए यह चिंतन का विषय है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद आखिर उन्हें पराजय क्यों मिली ?
निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी के नेता,संगठन एवं अन्य कद्दावर लोग इस पर चर्चा अवश्य करेंगे । अपनों की कमी, बडबोलापन,अति उत्साह या फिर किसी के द्वारा दिए गए भरोसे पर आंख बंद करके विश्वास करना या पार्टी के जयचंदों पर मंथन कमियों को अवश्य उजागर करेगा । लेकिन जिस तरह से हाई-वोल्टेज ड्रामा हुआ वह शायद पहले कभी नहीं हुआ । सबसे अधिक जरूरत तो पुलिस को ही अपना आत्म मंथन व चिंतन करने की लग रही है कि जिस तरह से चुनाव के दौरान फतेहपुर नगर पालिका परिषद में पुलिस की कार्य पद्धति रही उस पर बड़े सवाल खड़े होते रहे ?
उत्पीड़न की बात हुई तो किसी को लाभ पहुंचाने के आरोप भी लगे लेकिन अंततः परिणाम सामने क्या आया कि जिसके लिए सब कुछ खाकी ने न्यौछावर कर दिया उसी के कूचे से बेआबरू होकर निकलना पड़ा और परिणाम यह रहा कि जिन्हें अपने सिर पर वरदहस्त खाकी मान रही थी । उन्हीं के बीच से जो नारे मुर्दाबाद के निकल कर आए । शायद उनकी उम्मीद प्रशासन व पुलिस को समाजवादी पार्टी के लोगों से करनी चाहिए । लेकिन सब कुछ उल्टा हुआ बेशक समाजवादी पार्टी जीत का मंथन कर रही होगी तो भाजपा के पास भी अनगिनत अनसुलझे सवालों की ऐसी लंबी लड़ी है । जिनके धागों में पड़ी गांठ को सुलझाने के लिए माथा-पच्ची तो करनी ही पड़ेगी ।