
तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने पिछले शासनकाल के दौरान महिलाओं का दमन किया था । महिलाओं को पढ़ने और काम करने की आज़ादी नहीं थी । उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में किसी भी तरह की भागीदारी की अनुमति भी नहीं थी ।
इस बार तालिबान ने कहा कि महिलाओं को शरिया या इस्लामी क़ानून के तहत अधिकार दिए जाएंगे । लेकिन ये अधिकार क्या होंगे, इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है ।
शरिया क़ानून इस्लामी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित प्रावधान हैं,जिनमें नमाज़ पढ़ना,रोज़ा रखना और ग़रीबों की मदद करना वगैरह शामिल है ।
यह एक क़ानून व्यवस्था भी है । शरिया क़ानूनों के तहत इस्लामी अदालतों की सज़ा की कठोरता को लेकर मानवाधिकार समूह लगातार आलोचना भी करते रहे हैं । लेकिन दुनिया भर में शरिया क़ानून अलग-अलग ढंग से काम करते हैं ।
राजनीतिक तौर पर पाबंदियां भले हों लेकिन शरिया क़ानून अपनाने वाले देशों में महिलाओं की स्थिति उतनी भी बुरी नहीं है । जितनी तालिबान के पहले शासनकाल में देखने को मिली थी ।
शरिया क़ानून के तहत महिलों का जीवन कैसा है, यही जानने के लिए हमारे संवाददाता पहुंचे सऊदी अरब,नाइजीरिया ,ईरान,इंडोनेशिया और ब्रूनेई में रहने वाली महिलाओं से उनके अनुभव जानने की कोशिश की ।
सऊदी अरब में अब बहुत आज़ादी है: हन्नान अबूबकर
मैं मूल रूप से तन्ज़ानिया की हूं और लंबे समय से सऊदी अरब में रह रही हूं ।
भारतीय पाठ्यक्रम वाले एक इंटरनेशनल स्कूल में मेरी पढ़ाई हुई । हमारी स्कूल बस में लड़के और लड़कियां अलग-अलग बैठते थे ।
कैंटीन में भी लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग जगहें निर्धारित थी । दोनों की पढ़ाई एक स्कूल में तो होती थी लेकिन इसके लिए अलग-अलग कमरे तय किए गए थे । हालांकि कुछ विषयों को हमारे पुरुष शिक्षकों ने भी पढ़ाया था ।
लड़कियां खेल-कूद में भाग ले सकती थीं, लेकिन लड़कों के साथ खेलने की अनुमति नहीं थी । इसलिए हम लोग अलग-अलग दिन स्पोर्ट्स डे मनाते थे । शिक्षक लड़कियों के साथ कोई भेदभाव नहीं करते थे ।
सऊदी अरब अब कहीं ज़्यादा मुक्त देश हो गया । महिलाएं अकेली यात्रा कर सकती हैं, कार चला सकती हैं । मैं भी जल्दी लाइसेंस लेने की योजना बना रही हूं ।
कुछ साल पहले तक यहां सिनेमा हॉल नहीं था, लेकिन अब है और यह मेरी पसंदीदा जगह भी है । मैं अपना चेहरा नहीं ढँकती और यहां हिजाब पहनना भी अनिवार्य नहीं है ।
पुराने समय में रेस्तरां में परिवार के बैठने की जगह अलग होती थी और सिंगल लोगों के लिए अलग । अब ऐसा नहीं दिखता है ।
सार्वजनिक जगहों पर पुरुष और महिलाएं एक दूसरे से मिल सकते हैं । मैं ही अपना लंच पुरुष सहकर्मियों के साथ करने के लिए जाती हूं लेकिन यह एक मुस्लिम देश है, इसलिए नाइट क्लब और बार नहीं हैं ।
शराब पर पाबंदी है । मैं जेद्दा में प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करती हूं । मेरी कंपनी लोगों को जेंडर के आधार पर नहीं बल्कि उनके काम के आधार पर वेतन देती है ।
मैं 30 साल की हो चुकी हूं । जब सपनों का राजकुमार मिलेगा तभी शादी करूंगी । मेरे माता-पिता इस बात को समझते हैं । उन्होंने मुझ पर शादी के लिए कोई दबाव नहीं डाला है ।
कुछ लोगों की शिकायत यह है कि धीमी गति से सुधार हो रहे हैं । मेरे जन्म से पहले मेरी मां भी सऊदी अरब में ही रही हैं, उन्हें लगता है कि अब चीज़ें काफ़ी बदल गई हैं ।
ईरान में शराब गैरक़ानूनी लेकिन लोग पार्टी में पीते हैं: माहसा
माहसा के मुताबिक़ ईरान में किसी लड़की या औरत पर कितनी पाबंदी होगी, ये उनकी परिवारिक पृष्ठभूमि से तय होता है ।
(महासा की सुरक्षा को देखते हुए ना तो उनका पूरा नाम दिया जा रहा है और ना ही हम उनका चेहरा दिखाने वाली तस्वीर छाप रहे हैं) ।
ईरान का समाज तीन भागों में बंटा हुआ है । कुछ बहुत धार्मिक हैं, कुछ बेहद कड़ा रुख रखते हैं और कुछ ऐसे संकीर्ण मानसिकता वाले लोग भी हैं जो अपनी बेटी और बहन की हत्या केवल बॉयफ़्रेंड से संबंधों के चलते कर देते हैं ।
मेरा परिवार दूसरे समूह में आता है-इन्हें अर्बन मिडिल क्लास कह सकते हैं । इनका मुख्य उद्देश्य शिक्षा के बाद नौकरी हासिल करना होता है । तीसरा समूह बेहद कम लेकिन काफ़ी अमीर लोगों का समूह है जो किसी नियम क़ानून से बंधे हुए नहीं हैं ।
मेरी पैदाइश तेहरान की है और मैं यहीं पली-बढ़ी हूं । स्कूल और यूनिवर्सिटी में मैंने लड़कों के साथ पढ़ाई की है ।
ईरान में ज़्यादातर मां-बाप अपने बच्चों को मेडिसिन या इंजीनियरिंग पढ़ाना चाहते हैं लेकिन मैं डेंटल कॉलेज में नामांकन नहीं हासिल कर सकी । फिर मैंने अंग्रेजी की पढ़ाई की और इन दिनों केजी स्कूल में पढ़ाती हूं ।
ईरान में महिलाएं अकेले यात्रा कर सकती हैं । अकेली महिला किराए का घर लेकर अकेली रह सकती हैं । अकेली महिला को होटल का कमरा भी आसानी से मिल जाता है ।
मेरे पास अपनी कार है, जिसे मैं शहर में चलाती हूं । इन सबके लिए किसी पुरुष साथी की ज़रूरत नहीं है लेकिन सिर पर हिजाब अनिवार्य है ।
वैसे सार्वजनिक जगहों पर ‘अश्लील हरकतें’ करने वाले युवा जोड़ों को पुलिस हिरासत में ले सकती है । महिलाओं के लिए छोटे ओवरकोट पहनना भी मुश्किल में डाल सकता है । लेकिन ज़्यादातर पुलिस अधिकारी रिश्वत लेकर आपको छोड़ देते हैं ।
कई बार ऐसे लोगों को पुलिस स्टेशन भी ले जाकर माता-पिता को बुलाया जाता है ताकि उन्हें शर्मिंदगी महसूस हो ।
चार साल तक एक-दूसरे को डेट करने के बाद हमारी शादी हुई । हम लोग एक साथ सिनेमा,पार्क और दूसरी जगहों पर जाते रहे । मैं खु़शकिस्मत रही, ना तो किसी ने कभी संदेह किया और नाही पूछा कि हमलोग शादीशुदा हैं या नहीं ।
मेरे माता पिता बेहद सख़्त हैं । उन्होंने हमेशा मुझे रात के नौ बजे से पहले घर पहुंचने को कहा और दोस्तों के साथ कभी बाहर ट्रिप पर नहीं जाने दिया । शादी के बाद मैं ज़्यादा आज़ादी महसूस कर रही हूं ।
शराब पर पाबंदी है और हमारे यहां कोई बार भी नहीं है लेकिन लोग छिपाकर शराब ख़रीदते हैं और पीते है । पार्टियों में अधिकाश लोग पीते मिलेंगे । मैं शराब नहीं पीती हूं, मुझे इसके कड़वे स्वाद से नफ़रत है ।
मैं बच्चे भी नहीं चाहती हूं । हमारी सैलरी बेहद कम है और हम बेबीसिटर (आया) का ख़र्चा नहीं उठा सकते । बच्चे के साथ साथ पति और घर बार की देखभाल करना बड़ी चुनौती हो जाएगी ।
मैं अल्लाह में भरोसा करती हूं लेकिन धार्मिक नहीं हूँ । मैं रोज़ाना नमाज़ भी नहीं पढ़ती ।
किसी भी क़ानून से बेहतर है शरिया: हूवायला इब्राहिम मोहम्मद
नाइजीरिया की हूवायला इब्राहिम मोहम्मद शरिया क़ानून की वकील हैं और पिछले 18 सालों कानू,अबूजा और लागोस में प्रैक्टिस कर रही हैं ।
शरिया क़ानून व्यवस्था में मेरा भरोसा है । नाइजीरिया के 12 प्रांतों में शरिया क़ानून क्रिमिनल और फै़मिली लॉ, दोनों जगहों पर लागू है ।
मैं शरिया अदालत के अलावा सामान्य अदालतों में भी प्रैक्टिस करती हूं । इसलिए मैं दोनों के बारे में जानती हूं । शरिया अदालतों में जज पुरुष होते हैं । लेकिन महिलाएं बिना डर के अपनी बात रख सकती हैं ।
अपराधी को माफ़ी देने की भी काफ़ी गुंज़ाइश होती है । अधिकतम सजा देने से पहले न्यायाधीश को कई कारकों पर विचार करना होता है ।
कुछ अपराधों में, दोषियों को खुली अदालत में कोड़े मारे जाते हैं, लेकिन मैंने अभी तक एक महिला को इस तरह से दंडित होते नहीं देखा है ।
पत्थर मारकर मौत के जिन दो फ़ैसलों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान गया, उन्हें कभी लागू नहीं किया गया । इस्लाम में यह सजा व्यभिचार के लिए दी जाती है ।
जब उत्तराधिकार की बात आती है तो पुरुषों को महिलाओं की तुलना में दोगुनी संपत्ति मिलती है । यह बहुत अनुचित लग सकता है, लेकिन इसके पीछे एक कारण है – महिलाओं को कोई वित्तीय ज़िम्मेदारी नहीं दी गई है, उनकी रक्षा करना पिता, भाइयों और पतियों की ज़िम्मेदारी है ।
हां, ये ज़रूर है कि शरिया क़ानून में ये कहा गया है कि पति पत्नी को पीट सकता है- लेकिन इसकी सही समझ ये है कि पति ऐसा दिखावा कर सकता है या हल्के ढंग से पिटाई कर सकता है । उसे पत्नी को चोट पहुंचाने की अनुमति नहीं है ।
कुछ महिलाएं उत्पीड़न करने वाले पति के ख़िलाफ़ अदालत जाती हैं । मैंने ऐसे कई मामलों में उनकी वकालत की है और जीत हासिल की है । मैं यह कह सकती हूं कि बिना किसी भेदभाव के न्याय होता है ।
नाइजीरिया में आपको चेहरा ढकने की ज़रूरत नहीं है । महिलाएं यहां अपना तन ज़रूर ढकती हैं । कोई बहुत छोटा स्कर्ट पहन ले तो ये अजीब लगेगा ।
हालांकि पूरी तरह से शरीर नहीं ढकने पर या हिजाब नहीं रखने पर सजा देना सही नहीं है । महिलाओं को अपनी पसंद चुनने का अधिकार है ।
अगर शरिया क़ानून जैसा है, उसी तरह से उसे लागू किया जाए तो यह किसी भी क़ानून से बेहतर है ।
जानती हूं क्या सही है और क्या ग़लत: इज़्ज़ाती मोहम्मद नूर
इज़्ज़ाती मोहम्मद नूर बताती हैं कि उनका जन्म ब्रूनेई में हुआ और वह वहीं पली पढ़ीं । 2007 में जब वे 17 साल की थीं तो उन्हें ब्रिटिश स्कॉलरशिप मिली और तबसे वह ब्रिटेन में ही रह रही थीं ।
लंदन से मैंने ए-लेवल,डिग्री,मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की है । इसके बाद मैं एक इंवेस्टमेंट बैंक में सॉफ़्टवेयर डेवलपर के तौर पर काम करने लगी थी ।
कुछ ही सप्ताह पहले मैं अपने देश लौटी हूं । यहां अधिकांश लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं ।
शादी, विवाह और संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर यहां शरिया क़ानून लंबे समय से चलन में था । 2014 के बाद इसे आपराधिक मामलों के लिए भी मान्य किया गया है । हालांकि अब तक किसी को अमानवीय सज़ा नहीं मिली है ।
यहां महिलाएं जैसा चाहती हैं वैसे कपड़े पहनती है । अगर आप जिम में हों तो आप वहाँ किसी को हिजाब में भी देख सकते हैं और स्पोर्ट्स ब्रा में भी । लोगों को सजा देने के लिए यहां धार्मिक पुलिस की तैनाती नहीं है ।
स्कूली पढ़ाई के दौरान हमें इस्लाम के पांच स्तंभों- इस्लामी अर्थव्यवस्था और शरिया क़ानून के बारे में पढ़ाया गया । मैं सुबह में विज्ञान और गणित की पढ़ाई करती थी, दोपहर में मदरसे में जाती थी, जहां पुरुष और महिला दोनों शिक्षक थे ।
शरिया के मुताबिक़ पैतृक संपत्ति में,भाईयों को बहनों की तुलना में दोगुनी संपत्ति मिलती है लेकिन ब्रूनेई में अधिकांश लोग वसीयत छोड़कर जाते हैं । मेरे दादा-दादी ने भी यही किया था ।
धर्म के मुताबिक पांच बार नमाज़ पढ़ना होता है लेकिन मैं जितनी बार पढ़ सकती हूं, उतनी बार पढ़ती हूं ।
जब मैं छोटी थी तब माता-पिता इसको लेकर बेहद सख़्त थे..
बाद में ऐसा भी वक़्त आया जब मैं बिल्कुल नमाज़ नहीं पढ़ पाती थी, फिर मैंने अपना रास्ता चुना ।
विमान उड़ाना सीखने के बाद मैंने पायलट लाइसेंस हासिल किया है । फ्लाइंग क्लासेज के दौरान मेरी मुलाकात अपने बॉयफ़्रेंड से हुई, वे उत्तरी जर्मनी के हैं ।
मैंने शुरुआती दिनों में ही उन्हें बताया कि मैं एक धार्मिक युवती हूं और इस्लामी वातावरण में परिवार शुरू करना चाहती हूं । उन्होंने मेरी इच्छा को देखते हुए इस्लाम अपना लिया. हम जल्दी ही शादी करने वाले हैं ।
कुछ मुस्लिम चिंतक ये ज़रूर सोचते हैं कि पति-पत्नी न हों तो पुरुष और महिला को एक साथ समय नहीं बिताना चाहिए । लेकिन मुझे लगता है कि जो दो लोग शादी के लिए प्रतिबद्ध हों उन्हें भी शादी करने के लिए एक-दूसरे को जानने के लिए थोड़ा वक़्त देना चाहिए ।
मैं जानती हूं कि धर्म के मुताबिक़ क्या सही है और क्या ग़लत । मैं यह भी जानती हूं कि मेरे लिए क्या सही है और क्या ग़लत । ये दोनों दो अलग अलग बाते हैं ।
मैं हिजाब नहीं पहनती, कुछ लोग कह सकते हैं कि मैं मुस्लिम नहीं हूं । लेकिन यह मेरे और मेरे अल्लाह के बीच की बात है । अगर अल्लाह को लगेगा कि मैं ग़लत कर रही हूं तो मैं उनसे माफ़ी मांग लूंगी ।
मेरे ख़याल से ब्रूनेई में बहुत कम लोग रूढ़िवादी हैं, ज़्यादातर लोग उदार हैं ।
इस्लाम का मुख्य मूल्य शिक्षा और नए स्किल्स हासिल करना है । मुझे नहीं मालूम कि महिलाओं को नहीं पढ़ाने का आइडिया कहां से आया है । मेरे ख़याल से यह गैर इस्लामिक है ।
मैं हर दिन बेहतर मुस्लिम बनने की कोशिश करती हूं ।
शरिया हमारी आस्था का हिस्सा है: नासिरातुदिना
इंडोनेशिया की नासिरातुदिना 19 साल की छात्रा हैं । इकॉनामिक्स की पढ़ाई के साथ वह एक पुरुष अधिकारी की पार्ट टाइम सेक्रेटरी का काम भी करती हैं और खाली समय में केजी स्कूल के बच्चों को पढ़ाती हैं ।
मेरा जन्म इंडोनेशिया के आचे प्रांत के बेसार ज़िले में हुआ है । दुनिया में सबसे ज़्यादा मुसलमान इंडोनेशिया में ही रहते हैं लेकिन शरिया क़ानूनकेवल आचे प्रांत में लागू है ।
मैं पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ती हूं । मेरे लिए शरिया क़ानून हमारी आस्था का हिस्सा है ।
मैं अमानवीय सज़ा से भी सहमत हूं क्योंकि यह अपराधियों को डराने के लिए दिए जाते हैं । मैं लंबे कपड़े पहनती हूं ताकि शरीर ढँका रहे, सिर पर हिजाब भी रखती हूं लेकिन चेहरा नहीं ढँकती । यहाँ महिलाएं मिनी स्कर्ट और शार्ट्स नहीं पहन सकती हैं ।
मैं उतनी आज़ाद हो सकती हूं जितना मैं होना चाहूं ।
यहाँ यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियां एक साथ एक ही कमरे पढ़ाई करते हैं, हालांकि उनके बैठने की व्यवस्था अलग अलग होती है । लड़कों से बात करने पर कोई पाबंदी नहीं है । मैं उनसे बात करती हूं लेकिन बहुत ज़्यादा नहीं ।
मेरी कुछ दोस्त प्रेम संबंध में हैं । किसी से प्यार करना खूबसूरत होता है लेकिन सार्वजनिक जगहों पर लड़के-लड़कियां जोड़े के तौर पर नहीं जा सकते हैं और न ही एक दूसरे के प्रति अपना लगाव ज़ाहिर कर सकते हैं ।
कई महिलाएं शादी से पहले शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहती हैं क्योंकि इस्लाम में इसकी मनाही है ।
लड़के और लड़कियां एक समूह में बाहर जा सकते हैं, शॉपिंग माल्स में ख़रीदारी कर सकते हैं, रेस्टोरेंट और धार्मिक जगहों पर जा सकते हैं ।
हमारे यहाँ कोई सिनेमा हॉल नहीं है । यह थोड़ा दुखी करने वाला है लेकिन मैं टीवी पर सिनेमा देखती हूं ।
मैं सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हूं. मुझे म्यूज़िक से प्यार है और मैं कई म्यूज़िक कंपीटिशन जीत चुकी हूं ।
इस्लाम के मुताबिक़ एक आदमी को चार शादियां कर सकता है । लेकिन मैं किसी शख़्स की दूसरी,तीसरी या चौथी बीवी नहीं बनूंगी । हर महिला अपने लिए एक पति डिज़र्व करती है ।
मैं बिज़नस लीडर बनना चाहती हूं और एक केजी स्कूल शुरू करना चाहती हूं ।
मुझे अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के लिए बुरा महसूस हो रहा है ।
मुझे उम्मीद है कि मैं तब तक ज़िंदा रहूंगी जब फ़लीस्तीन,अफ़ग़ानिस्तान,सीरिया और ईरान में सभी महिलाएं, बच्चे और मुसलमान बम धमाके के बदले चिड़ियों की चहचहाहट से जगने लगेंगे ।
भारत,तालिबान को मान्यता देगा या नहीं ?