
बकेवर/फतेहपुर । कस्बा बकेवर सब्जी मंडी में उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध महिलाव व पुरुष कलाकारों द्वारा मैथिली अधिवेशन का अद्वितीय मंचन किया । दो दिवसीय मैथिली अधिवेशन के आज दूसरे दिन मैथिल नरेश महाराजा शीर ध्वज ने प्रतिज्ञा किया जो भगवान् शंकर के चाप को उठाएगा प्रत्यंचा खीच कर खंडन करेगा उसके साथ पुत्री सीता का पाणिग्रहण संस्कार करेगें । राजा जनक की प्रतिज्ञा सुन देश देशांतर के देव दनुज किन्नर मानव रुप धर कर जनक पुर की रंगशाला में आते हैं लेकिन कोई भी बीर योद्धा धनुष को तोडना तो दूर उसे हिला भी नही सके । राजा जनक ने जब देखा कि कोई भी शूरवीर धनुष नही खंडन कर पाया तो उन्होंने स्वयंवर की समाप्ति की घोषणा कर क्रोध में आकर कहा कि “तजहू आश निज निज गृह जाहू लिखा न विधि वैदेही विवाहू” !
जनक के तीखे बचन सुन लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वह जनक को भला बुरा कहते हैं । लक्ष्मण को क्रोधित देखकर राम उन्हें समझाते हैं और गुरु विश्वामित्र का आदेश पाकर धनुष का खंडन कर देते हैं । धनुष खंडन को देखकर मिथिला वासी खुशी से झूम उठते है । धनुष खंडन का जब समाचार परशुराम जी को मिलता है तो वह बिना विलम्ब के मिथिला आते हैं और खंडित धनुष को देखते ही क्रोधाग्नि में जल उठते हैं और धनुष तोड़ने वाले को सामने आने को चुनौती देते हैं । राम परशुराम जी से सविनय कहते हैं कि धनुष तोड़ने वाला कोई आपका ही सेवक होगा । इस बात से उनका क्रोध और बढ जाता हैं । तभी लक्ष्मण उनसे कठोर बचन बोल देते हैं । लक्ष्मण के बचनो से परशुराम जी और क्रोधित हो जाते हैं और उन्हें मारने को दौडते है तभी राम आकर परशुराम जी से भाई लक्ष्मण को क्षमा करने की याचना करते हैं । जब परशुराम जी को यह ज्ञात होता है कि धनुष राम ने तोड़ा है तो उन्हें सारंग देकर उसकी पत्यंचा चढाने को कहते हैं। राम जेसे सारंग लेते है । तत्काल छुते ही थनुष की पत्यंचा चढ जाती है । यह देखते उन्हें यह ज्ञात हो जाता है कि राम स्वयं मे श्री विष्णु का अवतार है और वह राम से क्षमा याचना कर पुनः तपस्या के लिए महेन्द्राचल को प्रस्थान कर जाते हैं ।
मैथिली अधिवेशन में मंचन करने वाले कलाकारों को दर्शकों ने खूब सराहा ।