
फतेहपुर / बिन्दकी (बोलती खबरें) : काम कोई भी हो लेकिन अगर बेहतर काम पर कोई भी समस्या उत्पन्न करें और अगर लेखक उसके खिलाफ लिख देता है तो एक पत्रकार के लिए बहुत ही गंभीर परिस्थितियां पैदा कर देता है । जब मामला सत्ता पक्ष का लिखना हो तो एक लेखक की कलम कितनी डगमगा सी जाती है । तब भी वह सही लिख ही देता है । क्योंकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर आज भी लोग भरोसा करते हैं । लेकिन साक्ष्य होने के बाद भी सत्ता के नुमाइंदों पर कोई कार्यवाही नहीं होती है । क्योंकि स्थानीय पुलिस प्रशासन पर सत्ता का इतना दबाव बना दिया जाता है कि अधिकारी कार्यवाही करने से पहले ही व्यथित हो जाता है । क्योंकि सत्ता पक्ष के छोटे बड़े नेताओ के तेवर में गर्मी इतनी होती है कि पुलिस के अधिकारी भी डर जाते हैं । इन युवा मोर्चा नेताओं के द्वारा इतना दवाब दिया जाता है कि अधिकांश मामलों में अधिकारी प्रताड़ित होने लगता है क्योंकि नेताओ की धमकियां मिलने लगती हैं ।
नवरात्रि का समय है मेले में भीड़ भाड़ का समय होता है ऐसे में पुलिस के अलावा आला अधिकारी का जिम्मा सुरक्षा का होता है लेकिन अगर इस सुरक्षा व्यवस्था के बीच में जिम्मेदार नेता ही पुलिस की बेहतर कार्यप्रणाली पर अवरोध उत्पन्न कर दें तो समझ लो कि राजनीतिक व्यवस्था कितनी निरंकुश हो चुकी है ।
ऐसे कुछ मामले होते हैं और कुछ नहीं होते हैं बल्कि कुछ जो होते हैं वह मीडिया के कैमरों में कैद हो जाता है और जो समाज के सामने आ जाता है नेताओं की हकीकत को मीडिया रूबरू कराता है । क्योंकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आज भी कही न कही जिंदा है । जो गम्भीर समस्या को भी दिखाता है ।
ऐसे ही मामलों में एक मामला उत्तर प्रदेश का है । जहाँ के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है । जो कि अपने बेहतर कार्यप्रणाली से प्रदेश को स्वच्छ किये हुए हैं लेकिन इनके ही नेताओ की गुंडागर्दी चरण सीमा में है जिससे क्षेत्र में अपवाद की स्थिति पैदा होती है ।
ऐसा मामला जनपद फतेहपुर के तहसील बिंदकी नगर का है । जहां नवरात्र का पावन पर्व चल रहा था और रथ यात्रा निकल रही थी और रथ यात्रा देखने के लिए नागरिकों में उत्सुकता थी । बहुत ही भीड़ भाड़ का माहौल था ऐसे में ही शाम से यात्रा के दौरान पुलिस मुस्तैद होती है पुलिस कमेटी की बैठक में जो रूट चार्ट बना था उसी रूट चार्ट पर सवारियां निकाली जा रही थी । सभी जगह पुलिस का सख्त पहरा था । जहाँ रूट डायवर्जन होता है वहाँ से कार और बाइकों का आवागमन प्रतिबंधित रहता है । पुलिस बेहतर कार्य के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन कर रही थी । जगह जगह पुलिस मुस्तैद थी । जिससे कोई अव्यवस्था उत्पन्न ना हो कोई भी हो गाड़ियों का जाना प्रतिबंधित होता है । लेकिन ऐसे में दबंग युवा मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष आशीष तिवारी अपनी कार में बैठकर ब्लैक शीशा में लगा वाहन,गाड़ी में लगा हूटर को डायवर्जन ( एन्ट्री ) की जगह पर अपनी गाड़ी को जबरन घुसेड़ दिया । लेकिन पुलिस मुस्तैद थी और वहाँ पर लगे पुलिस उप निरीक्षकों ने गाड़ी को रोक लिया और कहा कि अभी गाड़ियों का जाना प्रतिबंधित है क्योंकि रूट डायवर्जन है रथ यात्रा के दौरान अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी आप थोड़ा ठहर जाए या दूसरी तरफ से निकल जाए । शालीनता का परिचय देते हुए उप निरीक्षक ने कहा ।
लेकिन ये कहा पता था कि गाड़ी में सत्ता की गन्दी चिंगारी बैठा था इतने में ही आग बबूला हो कर भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा जिला उपाध्यक्ष आशीष तिवारी गाड़ी से उतरते हैं और उतरते ही पुलिस उप निरीक्षक से इस तरह बदतमीजी से पेश आते हैं कि जैसे पुलिसिया ताकत सत्ता की मुट्ठी में कैद है तेवर इतना गर्म था नेताजी का कि पुलिस को ही ज्ञान बता डाला । कहा कि आपको काम करने का तरीका नहीं पता है अपने तरीका को जानो मैं कौन हूं जानते हो ?
मैं भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा का जिला उपाध्यक्ष हूँ । इसके बाद वहां युवा मोर्चा के पदाधिकारियों की भीड़ जमा हो गई मामला गर्म हो गया जिससे वहाँ सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न हो गया । मामला काफी गर्म हो गया । दोनों में बीच-बचाव किया गया । जिससे विवाद की स्थिति में अंकुश लग सके ।
क्या पुलिस को इतना भी अधिकार नहीं है कि अराजकता फैलाने वाले नेता को कुछ कहने का अधिकार नहीं है । यह सिर्फ सुनने का अधिकार है । क्या न्याय व्यवस्था इतनी निष्ठा निष्ठुर हो चुकी है जहां पुलिस अपने अधिकारों से सत्ता के डर में बंधती हुई नजर आ रही है । अगर पुलिस के अधिकारों पर राजनीतिक व्यवस्था का साया आया तो निश्चित रूप से कानून व्यवस्थाएं निरंकुश हो जाएंगी । युवा मोर्चा के नेताओं द्वारा अपनी ड्यूटी कर रहे पुलिस निरीक्षकों से बदतमीजी पूर्वक बहस करना और उंगलिया दिखाकर धमकियां देते रहना जो कि कानून के नजरिए में इस तरह का अपराध है तो क्या इन पर मुकदमा का कोई अध्याय नहीं है ?
क्या इनके लिए न्याय व्यवस्था स्थिर हो जाती है ?
क्या लोकतंत्र निरंकुश हो गया है ?
अगर आम आदमी होता तो उस पर उच्च अधिकारियों द्वारा मामले को संज्ञान में लिया जाता और उसके साथ इतना बुरा बर्ताव किया जाता कि कई संगीन अपराधिक धाराओं पर मुकदमा दर्ज कर दिया जाता ।
इस तरह से नेताजी आग बबूला हो गए उनका तेवर इतना गरम हो गया कि पुलिस से ही बहुत बुरी तरह से अभद्रता करने लगा और कहा कि देख लेंगे आपको 24 घंटे के अंदर तुम्हारा ट्रान्सफर करा दिया जाएगा सारे आला अधिकारी तमाशा देख रहे थे लेकिन किसी की भी इतनी जुर्रत नही हुई कि कोई भी ऐसे सड़क छाप नेता पर कार्यवाही कर सके अगर इसी जगह पर कोई साधारण व्यक्ति होता तो अब तक पुलिस के साथ साथ सभी आला अधिकारी अपने सरों पर पहाड़ उठा लेते और सत्ता में बैठे लोगों का नंग नाच भी शुरू हो जाता लेकिन जब खुद सत्ता में बैठे नुमाइंदों के पदाधिकारी ही ऐसा कार्य करे तो कार्यवाही और संविधान तो सिर्फ एक कागज का मात्र टुकड़ा भर रह जाता है । ऐसे में इंसाफ के तराजू में सत्ता का पलड़ा ज्यादा भारी हो जाता है । कानून सबके लिए बराबर है ये कथन तो सिर्फ कानूनी किताबों तक ही सिमट कर रह गया है । असल मे बदलती सरकारों के साथ कानून के मायने भी बदल गए हैं ।
अब सवाल उठता है कि पुलिस के जिम्मेदार हितैषी अधिकारी कहा है जो पुलिस की बेहतर कार्यप्रणाली पर इनाम वितरित किया करते हैं । पुलिस जान जोखिम में डालकर नगर के नागरिकों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है । लेकिन जब इनकी सुरक्षा की बात आती है तो इनके ही उच्च अधिकारी इनकी मदद की जगह चुप्पी साध लेते हैं और अपनी गद्दी बचाने के लिए इनका इधर-उधर स्थानांतरण कर देती है ।
आखिर क्यों इस तरह से सरकारी काम पर बाधा करने वाले जिम्मेदार नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं और अगर कार्रवाई होती है तो उप निरीक्षक छोटे कर्मचारियों पर ही क्यों ?