
वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी की खास रिपोर्ट
फतेहपुर । देशभर में हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर बहुजन समाजवादी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया जो मोदी लहर में 2019 चुनाव में यूपी में 10पार्टी सीटे जीतकर दूसरी पार्टी बनी थी । हालांकि उसमें सपा का वोट भी जुड़ा था । क्योंकि दोनों ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था । अभी हुये चुनाव में बसपा का वोट बैंक 10 प्रतिशत से भी कम दर्ज हुआ । सूबे समेत फतेहपुर लोकसभा में भी बसपा का यही हाल रहा जहां 8 प्रतिशत मत मिले । जिसका मुख्य कारण उसके कैडर वोट बैंक का खिसकना है,जो 2014 व 2019 के चुनावों में आई मोदी लहर में कुछ हिस्सा भाजपा की तरह गया तो वही हाल के आम चुनावों में इंडिया गठबंधन की ओर । कई राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि दलित वोट बैंक पहले कांग्रेस के साथ रहता था । आज इस बार भी उनकी घर वापसी हुई है । हाल की स्थिति में सूबे में कांग्रेस तीसरी पोजिशन पर आकर बसपा को चौथे स्थान पर भेज दिया । इसी प्रकार के आंकड़े 2022 विधानसभा चुनावों में नज़र आये थे । वहां भी बसपा का इसीप्रकार सूपड़ा साफ हुआ था ।
अच्छी-खासी दलित आबादी वाले फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र में पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने 1996 में जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज की थी । जब विशम्भर प्रसाद निषाद सांसद चुने गए । जनपद में इसके बाद दो चुनावों में हार के बाद 2004 में लगभग 32 प्रतिशत वोट बैंक के साथ महेंद्र कुमार निषाद बसपा से सांसद चुने गए तो अगली पंचवर्षीय यानी 2009 के चुनाव में वोट बैंक का यह आंकड़ा घटकर 24 प्रतिशत रह गया जिससे बसपा दूसरी स्थान पर खिसक गयी और सपा से राकेश सचान सांसद नियुक्त हुए ।
वही 2014 व 2019 के बसपा का लगभग प्रतिशत क्रमशः 28 प्रतिशत व 36 प्रतिशत रहा,हालांकि 2019 में समाजवादी पार्टी का वोट बैंक भी इसमें जुड़ा क्योंकि दोनों पार्टियों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था । 2024 में ये घटकर मात्र लगभग 8 प्रतिशत ही रह गया । कुल मिलाकर पिछले डेढ़ दशक में उसका जनाधार घटकर चौथाई से भी कम हो गया ।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठन 14 अप्रैल 1984 में हुआ था । 1989 में फतेहपुर लोकसभा में पहली बार बसपा ने चुनाव लड़ा और 8 प्रतिशत वोट अर्जित किये 2024 लोकसभा के नतीजों के बाद आज जनपद में लगभग वही पर बसपा आकर टिक गई है अर्थात बसपा ने दूरी तो काफी तय की मगर विस्थापन शून्य ही रहा ।