
पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान बनाए गए पीएम केयर्स फंड से भारत में ऑक्सीजन के 551 प्लांट लगाए जाएंगे ।
प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने थोड़ी देर पहले प्रधानमंत्री कार्यालय के हवाले से एक रिलीज़ जारी कर यह जानकारी दी है ।
रिलीज़ में कहा गया है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में ज़िला मुख्यालयों के सरकारी अस्तपालों में पीएसए ऑक्सीजन के 551 प्लांट लगाए जाएंगे ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इन प्लांट्स को जितनी जल्दी हो सके, चालू किया जाएगा ।
ऑक्सीजन प्लांट लगाने और इसे चालू करवाने का काम केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की देखरेख में होगा ।
रिलीज़ में कहा गया है कि इससे पहले पीएम केयर्स फंड से 162 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए 201.558 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे ।
पिछले कुछ दिनों से लोग सोशल मीडिया पर यह सवाल भी पूछ रहे थे कि जब देश महामारी के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है तब ऐसे समय में पीएम केयर्स क्या मदद कर रहा है ।
क्या है पीएम केयर्स फंड और इसे लेकर क्यों है विवाद ?
भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पहली बार लॉकडाउन शुरू होने के कुछ ही दिन बाद 27 मार्च को नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर्स फंड का गठन किया था और लोगों से इसमें आर्थिक योगदान की अपील की थी ।
पीएम मोदी की अपील के बाद कई क्षेत्रों से डोनेशन आने शुरू हो गए थे । उद्योगपति, सेलिब्रिटीज़, कंपनियाँ और आम आदमी ने भी इसमें अपना योगदान किया ।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एक सप्ताह के अंदर इस फंड में 65 अरब रुपये इकट्ठा हो गए थे ।
पीएम केयर्स फंड शुरू से ही विवादों में भी रहा है । कई लोगों ने इस पर सवाल उठाया कि जब 1948 से ही पीएम नेशनल रिलीफ़ फंड (पीएमएनआरएफ़) मौजूद है, तो नए फंड की क्या ज़रूरत थी ?
पीएम केयर्स फंड के गठन के कुछ दिनों के अंदर ही ये सवाल भी उठने लगे थे कि किस तरह इस फंड को बनाया गया है और इसे कैसे मैनेज किया जा रहा है, कितना पैसा अभी तक इकट्ठा हुआ है और ये किसके लिए और कैसे इस्तेमाल होगा ?
अदालतों में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत याचिकाएँ दायर की गईं कि इस मामले में और पारदर्शिता लाई जाए । लेकिन अभी तक यही कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक अथॉरिटी नहीं है ।
इसका मतलब ये है कि न ही सरकार की ओर से इसे पर्याप्त वित्तीय मदद मिलती है और न ही इस पर उसका नियंत्रण है । इसलिए ये आरटीआई के दायरे में नहीं आता ।
इसका मतलब यह भी हुआ कि इसकी जाँच सरकारी ऑडिटर्स भी नहीं कर सकते ।