
Waqf Board । केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष के जोरदार विरोध के बीच वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 को लोकसभा में पेश कर दिया ।
केंद्र सरकार का दावा है कि इस संशोधन में वक्फ बोर्ड के कानूनों को आधुनिक,लोकतांत्रिक और गरीब मुसलमानों के हितों के अनुरूप बनाने की कोशिश की गई है । मुस्लिम विद्वान मानते हैं कि वक्फ बोर्ड एक्ट का संशोधन मुस्लिम समुदाय पर दूरगामी असर डालेगा । अभी जो शुरुआती जानकारी मिली है । उसके अनुसार केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड एक्ट में निम्नलिखित प्रमुख बदलाव करने की बात कही है –
1- नए वक्फ बोर्ड बिल में केंद्रीय और राज्यों के वक्फ बोर्ड में एक पूर्व जज को नियुक्त किये जाने का प्रस्ताव है । इस समय मानवाधिकार आयोग सहित कई बड़ी संस्थाओं के चेयरमैन के रूप में एक रिटायर्ड जज को नियुक्त किया जाता है । अब केंद्रीय वक्फ काउंसिल के मामले में भी इसी मॉडल को अपनाया जाएगा । इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता और बेहतरी आएगी ।
2- केंद्र और राज्य के वक्फ बोर्ड में क्षेत्र का स्थानीय जनप्रतिनिधि (सांसद या विधायक) भी एक सदस्य होगा । वह किसी भी धर्म-समुदाय का हो सकता है । चूंकि जनप्रतिनिधि के तौर पर किसी भी धर्म-समुदाय के व्यक्ति का चुनाव हो सकता है । इस तरह वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों का प्रवेश होगा । मुसलमानों की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल इसका विरोध कर सकते हैं ।
अभी इस समय पश्चिम बंगाल में मंदिरों का प्रबंधन करने वाली एक समिति का अध्यक्ष एक मुसलमान व्यक्ति को बनाया गया है । हिंदू समुदाय सहित विपक्ष की तमाम दलीलों के बाद भी ममता बनर्जी सरकार ने इसे बरकरार रखा है केंद्रीय वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों की नियुक्ति में यह एक आधार बन सकता है । केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा है कि यह सोच बेहद दकियानूसी बात होगी कि किसी धर्म के हितों के संरक्षण के लिए किसी व्यक्ति को उसी समुदाय का होना आवश्यक है । इससे केंद्र सरकार का रुख समझ में आता है ।
3- केंद्र सरकार ने केंद्रीय वक्फ बोर्ड सहित राज्यों के वक्फ बोर्ड में दो-दो महिलाओं को अनिवार्य रूप से नियुक्त करने का प्रावधान किया है । इससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और उन्हें सशक्त करने में मदद मिलेगी ।
4- वक्फ बोर्ड के कार्यकलाप को बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों को शामिल करने की बात कही गई है । इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में बेहतरी आएगी और वक्फ के मामले अनावश्यक रूप से कानूनी पचड़ों में नहीं फंसेंगे ।
5- आधुनिक तकनीकी का उपयोग करके वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की पूरी जानकारी डिजिटल की जाएगी । इससे वक्फ की संपत्तियों को किसी दूसरे के द्वारा कब्जा नहीं किया जा सकेगा । आरोप है कि अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी (दोनों अब मृतक) जैसे अपराधियों ने अपने सत्ता बल और बाहुबल का उपयोग करते हुए वक्फ बोर्ड की बेशकीमती जमीनों को हथिया लिया था । वक्फ की संपत्तियों के डिजिटलीकरण होने से इस तरह के अपराध रुकेंगे ।
6- वक्फ बोर्ड से संबंधित विवादों के मामले में काउंसिल को छह महीने के अंदर निर्णय देना अनिवार्य होगा । अपील करने के लिए अधिकतम तीन महीने का समय दिया गया है । इस समय केंद्र से लेकर राज्यों तक हजारों केस वक्फ बोर्ड के पास लंबित हैं । इससे उन गरीब लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है, जो अपनी जमीन को वक्फ के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं या उस पर अपना कब्जा वापस पाना चाहते हैं ।
जानकारों का मानना है कि इस तरह का न्याय मांगने वालों में भी सबसे ज्यादा लोग गरीब मुसलमान ही होते हैं ।
जिले के कलेक्टर को अधिकार
7- इस बिल के प्रस्तावित बदलाव के अनुसार, अब जिले के कलेक्टर को यह बताने का अधिकार होगा कि कोई प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड की है, या नहीं । जिलाधिकारी किसी जमीन के वक्फ बोर्ड या सरकारी जमीन होने की आधिकारिक जानकारी दे सकेगा ।
चूंकि, जिलाधिकारी ही जमीनों के मामले में जिले का सबसे बड़ा अधिकारी होता है और उसके पास संबंधित विभागों के माध्यम से किसी जमीन की असली हैसियत पता रहती है । माना जा रहा है कि इस बदलाव के बाद किसी जमीन को गैरकानूनी तरीके से वक्फ बोर्ड की नहीं बताया जा सकेगा । इससे वक्फ बोर्ड के जमीन से जुड़े विवादों को कम करने और उन्हें समाप्त करने में मदद मिलेगी ।
वक्फ बोर्ड के चेयरमैनों के अधिकारों में कटौती
चूंकि, अब तक कोई जमीन वक्फ बोर्ड की है या नहीं, यह बताने का अंतिम अधिकार वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को ही होता है, नए बदलाव के बाद वक्फ बोर्डों के चेयरमैनों के अधिकारों में कटौती होगी । वक्फ बोर्ड के सदस्यों और मुसलमान मतदाताओं की राजनीति करने वाले दलों के द्वारा इसका विरोध किया जा सकता है ।
मुसलमानों के अन्य वर्गों को मिलेगी मजबूती
8- वर्तमान वक्फ बोर्डों के अंदर ही शिया, सुन्नी, बोहरा और अहमदिया समुदायों (सभी मुसलमान समुदाय के उपवर्ग हैं) के लिए प्रावधान करने की बात कही गई है । इससे मुस्लिम समुदाय के उपेक्षित वर्ग भी मजबूत होंगे । लेकिन इससे विभिन्न इस्लामिक वर्गों में विवाद बढ़ सकता है । इसकी शुरुआत बिल को पेश करने के समय ही हो गई है । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सुन्नी जमात ने वक्फ बोर्ड में किसी बदलाव को स्वीकार न करने की बात कही है,जबकि सूफी समुदाय के लोगों ने अभी से बदलाव का स्वागत करना शुरू कर दिया है । यह मतभेद आगे भी बढ़ सकता है ।
वक्फ की संपत्ति-लेनदेन का सीएजी ऑडिट
9- अब केंद्र सरकार कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया के माध्यम से वक्फ बोर्ड के सभी लेनदेन का ऑडिट करा सकेगी । इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता आ सकेगी,लेकिन माना जा रहा है कि राजनीतिक कारणों से इसका भी विरोध किया जा सकता है । हालांकि, इस समय भी हिंदुओं के बड़े धार्मिक स्थलों की आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सरकार का तंत्र मौजूद है, लेकिन वक्फ बोर्ड के मामले में अब तक ऐसा नहीं था ।
वक्फनामा बनाकर ही होगा दान, विवादों से मुक्ति
10- अब यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ को दान करना चाहता है,तो उसे वक्फनामा बनाकर लिखित तौर पर इसकी घोषणा करनी पड़ेगी । अब तक मौखिक रूप से भी यह कहकर अपनी संपत्ति वक्फ को दान दी जा सकती है । आरोप है कि कई बार गरीब मुसलमानों की संपत्ति को हड़पने के लिए वक्फ बोर्ड के कुछ अधिकारियों के द्वारा यह मौखिक रूप से कह दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति वक्फ को दान देने के लिए कह दिया था । इस स्थिति में कोई कागजी सबूत न होने के कारण गरीब मुस्लिम परिवार अपनी ही संपत्ति को वापस पाने के लिए वक्फ बोर्डों और अदालतों की चौखट पर भटकता रहता है । लेकिन यदि लिखित वक्फनामा के जरिए अपनी संपत्ति को वक्फ बोर्डों को दान दी जाएगी तो इस तरह के विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे ।
यही कारण है कि केंद्र सरकार के इस कानूनी बदलाव को मुसलमान समुदाय के हित में और क्रांतिकारी बताया जा रहा है ।