
वरिष्ठ पत्रकार – रवीन्द्र त्रिपाठी
फतेहपुर : विधानसभा निर्वाचन 2022 ऐसा चुनाव रहा । जिसमें जातीयता धर्म व संप्रदाय का बोलबाला रहा और जातीय विभाजन की ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच गया । जिसे आने वाले समय में मिटाना एक बुक बड़ा कठिन कार्य होगा । सत्ता तक पहुंचने के लिए इस चुनाव में की गई विभाजन की साजिश,लोक लुभावने कार्यक्रमों की घोषणा,मुफ्त की रोटी तोड़ने का सपना दिखाकर जिस तरह से सत्ता के कारीगरों ने तांडव किया है । वह देश समाज के लिए ही हितकर नहीं है बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक अभिशाप साबित होगा ।
सामाजिक समरसता भाईचारे को तोड़ने की हो रही साजिश देश और समाज को किस ओर ले जा रहा है । यह एक मंथन का विषय होना चाहिए कि सत्ता पर काबिज होने के लिए किस तरह से देश की समरसता व अखंडता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । इस काम में देश के क्षेत्रीय दलों से लेकर राष्ट्रीय दलों तक में जातीयता को आगे लाकर खड़ा किया है । इस चुनाव में अगर सबसे ज्यादा कोई घिनौना कृत्य हुआ है ।
वह है अमर्यादित भाषाओं का का इस्तेमाल किया जाना । मतदाताओं को लुभाने के लिए देश के प्रधानमंत्री से लेकर अदने नेताओ ने जिस अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया है । वह हमारी हिंदू संस्कृति के गाल में तमाचे जैसा है ।
“पर हित” के स्थान पर “स्वयं हित” साधने वाली इस चुनावी प्रक्रिया ने देश की संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने का काम किया है । नेताओं की भूमिका को लेकर जहां सवाल खड़े होते हैं । वही हमारे देश की मीडिया भी इससे बाहर नहीं है । नेताओं की अमर्यादित भाषाओं का प्रसारण भी तो हमारी संस्कृति को ठेस पहुंचाने वाला ही लगता है ।