
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रॉस एडहॉनम गीब्रिएसुस ने कहा है कि वैक्सीन के उत्पादन में तेज़ी लाने के लिए ज़रूरी है कि वैक्सीन के पेटेन्ट के नियम हटाए जाएं ताकि अधिक देशों में वैक्सीन का उत्पादन हो सके और वैक्सीन की कीमतें भी कम हों ।
उन्होंने वैक्सीन उत्पादन से जुड़े पेटेन्ट नियम हटाने के भारत और दक्षिण अफ़्रीका के प्रस्ताव का स्वागत किया है और कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि दूसरे देश भी इसका समर्थन करेंगे ।
उन्होंने कहा कोरोना महामारी से जंग के लिए संगठन को और धन की ज़रूरत है ।
सोमवार को आयोजित एक वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में सभी वयस्कों को कोरोना का टीका दिया जा सके इसके लिए संगठन को इस साल और 19 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी, जबकि अगले साल 35 से 45 अरब डॉलर की ज़रूरत होने का आकलन है ।
उन्होंने कहा कि जी7 देशों के समूह में शामिल देश इस महत्वपूर्ण काम का नेतृत्व कर सकते हैं और ज़रूरी धन की व्यवस्था करने में संगठन की मदद कर सकते हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट सौम्या स्वामिनाथन ने कहा है कि अगले कुछ महीनों के लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट से अधिक मात्रा में वैक्सीन की उम्मीद नहीं की जा सकती, इसलिए वैक्सीन प्राप्त करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन दूसरे रास्ते तलाश रहा है ।
हाल में दिनों में भारत में कोरोना संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ने के बाद भारत सरकार ने वैक्सीन के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी ।
संवाददाता सम्मेलन में सौम्या स्वामिनाथन ने कहा, “हमें उम्मीद नहीं है कि अगले कुछ महीनों तक भारत की सीरम इंस्टीट्यूट आकलन के अनुसार मात्रा में हमें कोरोना वैक्सीन सप्लाई कर सकेगी । ऐसे में दूसरे यूरोप और दूसरे देशों से ऐस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन लेना मददग़ार साबित होगा ।”
उन्होंने कहा, “हम अमेरिका से बात कर रहे हैं जिसने ऐस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन के 6 करोड़ डोज़ देने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी । अमेरिका के पास वैक्सीन है और हमें उम्मीद है कि संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम के तहत ये वैक्सीन भारत और दूसरे देशों को दी जा सकेगी ।”
उन्होंने कहा कि संगठन मॉडर्ना से भी बात कर रहा है और कंपनी के साथ वैक्सीन की 50 करोड़ डोज़ को लिए करार पर सहमति बनी है । लेकिन ये वैक्सीन इस साल के मध्य तक ही मिलना शुरू होगी ।
कोवैक्स योजना के तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया के सभी मुल्कों तक कोरोना की वैक्सीन पहुंचाना चाहता है । संगठन के अनुसार योजना का असर क़रीब 190 देशों पर पड़ेगा ।