
मौलिक कविता –तुम्हें सजा न दूं तो क्या दूं ?
तुम्हें सजा न दूं,
तो क्या दूं ?
तुम्हारी गलतियों को क्यूं मैं हवा दूं ?
ये जो स्वांग रचाया है तुमने,
अपनेपन का ।
जी चाहता है,
अब तो,तुम्हारी यादों को दिल से मिटा दू ।।
तुम्हें……..
तुम्हें न जाना की न समझा,
मीठी–मीठी बातों को ही बस सुना मैने,
तुम्हारे झूठ पर भरोसा करती गई,
तुम पल–पल मुझे छलते गए,
अब रिश्ता हमारा ऐसा बना,
न छोड़ सकते न निभा सकते ।
तुम्हें…..
जो सपने देखे थे ,
खुली आंखों से,
एक– एक टूटे चकनाचूर हुए ,
झूठे वादे झूठी कसमें,
भरोसा किसी पर,
और क्यू होगा ?
तुमने जो ऐसा बनाया मुझे,
अब तुम ऐतवार मैं क्यूं करूं ?
तुम्हें….
अब झूठ फरेब में तुम भी रहो,
तुम्हें क्या किसी को भी,
अब समझ में,
मैं नहीं आने वाली,
मैं खुश हूं या दुःखी,
सोचते रहो,
तुम यूं ही दर –बदर भटकते रहो।
तुम्हें……
पूनम (कल्पना) Pg (Hindi)
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वजीराबाद दिल्ली