
फतेहपुर । उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग की ओर से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अब्दुल हफीज के संयोजकत्व मेे एक जश्ने सर सैयद अहमद के २०६वीं सालगिरह के मौके पर मनाया गया । जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग प्रदेश उपाध्यक्ष मिस्बाह उल हक़,वरिष्ठ नेता मोहम्मद अज़ीज़,युवा नेता नफीस खां,कासिम अली,आशिक अली,रमजान खां, शकील,नसीम कुरैशी आदि लोगों ने भाग लिया ।
इस अवसर पर अब्दुल हफीज ने कहा कि सर सैयद अहमद ख़ां 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में एक नामी परिवार में पैदा हुए जिन्हे एडिन बर्ग यूनिवर्सिटी से मानद एल एल डी की उपाधि दी गई ।
सर सैयद ने कहा था कि मुस्लिमों को मजहबी शिक्षा व आधुनिक युग की दुनियावी शिक्षा के बगैर प्रगतिशील विचारों वाला समाज नहीं बना सकते । इस बात का पता उन्हें था कि मुस्लिम समुदाय की पहचान उन दिनों कैसी रही है । फिर किस सत्ता के विरोध के बीच एक स्कूल खोला जो आज तालीम की रोशनी का नाम है ।
यह बाते आज भी हमें रोशनी देती है कि उस सपने को हमारे बीच के रहनुमा उसे पूरा कर नहीं पाए है । आज भी हम लोग वहीं खड़े है । अभी बहुत कुछ इस शिक्षा के साथ वैज्ञानिक तर्क संगत विवेक की ओर बढ़ने का काम करना होगा । जिसमें तमाम बुराइयां समाज पर्दा,तलाक ,पुनर्विवाह ,परंपरागत जीने की शैली से उन लोगों को जागरूक करने का काम होना चाहिए जो हम सब को संविधान से पोषित करता है ।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष मिस्बाह उल हक़ ने सर सैयद को खिराजे अकीदत पेश करते हुए कहा कि सर सैयद अपने जीवन काल के अनुभवों से उन्होंने बताया कि व्यक्ति और समाज के लिए शिक्षा के जरिए ही आगे आकर अपनी भागीदारी से आजादी का हक हासिल कर सकते है । वे अन्तर धार्मिक समानता के अधिकार के प्रति अंग्रेजों की उस राज को भी जान गए थे । जिसमें वह विभेद कारी षड्यंत्र की रचना कर रहे थे ।
उन्होंने 1873 मेे कहा था कि राष्ट्रवाद के सिद्धांत मेे धर्म बाधक नहीं होना चाहिए । उनके अनुसार धार्मिक तथा आध्या त्मिक मामलों को व्यक्तिगत सांसारिक मामलों से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए और यही राजनेतिक उद्देश्य धर्म निरपेक्षता को पोषित करता है । उनका सामाजिक दर्शन राजनेतिक सोच और प्रजातांत्रिक व्यवस्था मेे प्रगतिशील लक्ष्य का रास्ता अंग्रेजों के प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नहीं मानती ।
श्री हक ने कहा कि आजादी के बहुत पहले से ही वह भारत की संस्कृति सभ्यता और उसके प्रति समर्पित करते एक कर्मयोगी की तरह स्वतंत्रता संग्राम के लिए बहुत योगदान दिया । भले ही वह किन्हीं कारणों से उसी ब्रिटिश साम्राज्य की कम्पनी मेे नौकरी कर त्याग दिया ।
स्वामी विवेकानंद से लेकर देवेन्द्र नाथ टैगोर तक उनके घनिष्ठ मित्र रहे । उन्होंने अपने जीवन में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की तो सभी धर्मों के भारतीयों के लिए प्रवेश खोल दिया था और निर्माण मेे आर्थिक सहायता भी मिली ।
अंत में अजीज ने कहा कि हमारी तरक्की का एक ही हल है कि लोग लड़कियों को लेकर और लड़कों को जरूर पढ़ाई कराएं ऊंचाई तक लेे जाए । लोग आधी अधूरी शिक्षा से पहले ही गरीबी का नाम लेकर छोड़ देते है । इसके लिए समाज के जिम्मेदार लोगों को आगे आकर अपनी सेवा देनी चाहिए ।