
कानपुर । कानपुर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर कमालपुर गांव में हजारों वर्ष पुराना मां भुइयां रानी का मंदिर स्थापित है । नवरात्र के दूसरे दिन मां भुइयां रानी मंदिर में दर्शन के लिए श्रद्धालु सुबह से ही हाथों में पूजा की थाली लिए जा रहे थे । घण्टे व घड़ियालों की भक्ति धुन के बीच मंदिर में देवी माता की पूजा हो रही थी । माता की जय जयकार से मंदिर प्रांगण गूंजने लगा । यहां आसपास गांव समेत दूर-दूर से माता के भक्त दर्शन करने के लिए आते है । माता सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करती है । कमालपुर गांव के रहने वाले भक्त सत्यनारायण अवस्थी ने बताया कि बुजुर्ग बताते हैं कि मां भुइयां रानी का मंदिर हजारों वर्ष पुराना है । सैकड़ों वर्ष पहले मंदिर के पास पारा कमालपुर के नाम से एक गांव बसा हुआ था । उसी दौरान एक भयानक बीमारी आई । उस बीमारी की चपेट में गांव के कई लोगों की मौत हो गई । बीमारी को देखते हुए जो लोग बचे वो मंदिर प्रांगण में आकर रहने लगे । कई वर्षों बाद गांव का दो भागों में विभाजन हो गया । जिसके बाद गांव का नाम कमालपुर पड़ गया ।
उन्होंने बताया कि भुइयां रानी निर्माण व स्थापना के बारे में तो किसी को नहीं पता, लेकिन बताया जाता है कि बरगद के पेड़ के नीचे हजारों वर्ष पहले मां की प्रतिमा रखी मिली थी । जिसे यहां के लोगों द्वारा पूजा जाने लगा । कुछ समय बाद इसी स्थान पर लोगों ने छोटी सी मठिया बना दी । यही मठिया काफी वर्षों तक लोगों की आस्था का केंद्र रही । लेकिन जनसहयोग से मंदिर का भवन बनकर तैयार हुआ । भक्तों द्वारा यहां पर पूजा-पाठ इत्यादि किया जाता है । लोग अपने बच्चों के यज्ञोपवीत मुंडन अन्नप्राशन इत्यादि भी संपन्न कराते ।
गांव निवासी आशु तिवारी ने बताया कि नवरात्र पर्व को लेकर मा भुइयां रानी के मंदिर में नौ दिन भक्तों की भीड़ रहती है । मान्यता है कि मंदिर प्रांगण से कभी भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटते, भक्तों की सच्चे से मांगी हुई हर मनोकामना पूरी होती है । यहां मंदिर के पीछे चबूतरे की मिट्टी लगाने से गठिया रोग ठीक हो जाता है । होली के बाद शीतला अष्ठमी को मंदिर प्रांगण में ऐतिहासिक विशाल मेला का आयोजन किया जाता है । जिसमें धनुष भंग का भी आयोजन होता है । आसपास गांव समेत दूर-दूर से लोग मंदिर में दर्शन व धनुष भंग को देखने के लिए आते है । नवरात्र के दूसरे दिन प्रातः स्नान ध्यान करने के बाद मंदिर की सफाई करें । इसके बाद मंदिर में एक चौकी पर मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें । इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान करवाएं। सफेद रंग माता का प्रिय माना गया है । ऐसे में पूजा के दौरान उन्हें सफेद फूल और वस्त्र अर्पित करें । इसके बाद माता को रोली, चंदन,अक्षत और लाल गुड़हल का फूल चढ़ाएं । इसके साथ ही मां के इस स्वरूप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाएं । भोग के रूप में माता को फिर मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें ।