फतेहपुर । लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी अगर भारतीय जनता पार्टी ने जमीनी मुद्दो पर मंथन नही किया तो यूँ ही गुटबाजों को खोजती रहेगी और आने वाले विधानसभा चुनाव में हवा हवाई साबित होगी भाजपा को नकारात्मक सोच से बाहर आना होगा और आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर आगे की रणनीति तैयार करनी होगी । टिकट वितरण में भी पार्टी के समर्पित कद्दावर कार्यकर्ताओं को भी ध्यान में रखना होगा । लोकसभा चुनाव के बाद हवा से बातें करने वाली भारतीय जनता पार्टी सहम गई है । उत्तर प्रदेश में भाजपा के कमजोर प्रदर्शन का ही नतीजा रहा कि 400 पार का नारा न केवल फुस्स हो गया बल्कि पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में उतनी सीटें ही भाजपा पीछे रह गई जितने का दावा कर उम्मीद उत्तर प्रदेश से लगाकर भाजपाइयों ने रखी थी । फतेहपुर लोकसभा सहित पूरे उत्तर प्रदेश में आशा के विपरीत प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी की तिलमिलाहट ऐसी है कि अब वह पार्टी के अंदर के गद्दार ढूंढने में लगी है । हार के कारणों का मंथन किया जा रहा है पर सवाल यह उठता है कि अंतर कलह से जूझ रही भाजपा क्या वास्तव में हार के वास्तविक कारणों का पता लगा पाएगी ?
या फिर गुटबाजी की ही तरह धड़ों में बंटे नेताओं के बीच ताकत और जोर आजमाइश का नमूना देखने को मिलेगा । भाजपा हार के कारणों का जो भी निष्कर्ष निकाले लेकिन हकीकत तो यह है कि चुनाव से पहले तक सातवें आसमान में चल रही । भारतीय जनता पार्टी समस्याओं से जूझ रही जनता की न आवाज सुन सकी और न ही अंदर खाने हो रही वोटो की शिफ्टिंग की भनक ही उसे लग सकी । नेता कार्यकर्ता हवा में बातें करते रहे और जब परिणाम सामने आया तो भाजपा औंधे मुंह गिरी ।
अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो भाजपा का 400 पार का नारा और भी बुलंद हो गया । लगा भी ऐसा कि भाजपा के तूफान में विरोधी कहीं टिकेंगे नहीं लेकिन जैसे-जैसे समय नजदीक आया चुनावी बयार ऐसी चली कि ऐसे-ऐसे किले ध्वस्त हो गए जिनकी कल्पना भाजपा ने कभी की ही नहीं थी ।
‘जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे’ की आवाज बुलंद करने वाले भाजपाइयों की नैया पतित पावनी धरती अयोध्या के सरयू नदी में ही डूब गई । परिणाम चौंकाने वाले रहे । समाजवादी पार्टी प्रदेश की पहले नंबर की और देश की तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी बन गई । कांग्रेस का भी प्रदर्शन कमतर लेकिन पिछले चुनाव से बेहतर रहा और मतों में जबरदस्त इजाफा हुआ । बहुजन समाज पार्टी अपने वजूद की रक्षा नहीं कर पाई भाजपा प्रत्याशी साध्वी निरंजन ज्योति सहित प्रदेश के 06 एवं देश के 19 केंद्रीय मंत्री तक चुनाव हार गए ।
परिणामों ने भाजपा को ऐसा चौंकाया कि हार का यह सदमा केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने के बावजूद भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है । अब हार के कारणों का मंथन किया जा रहा है । चुनाव हारे सांसदों ने गुटबाजी एवं पार्टी के अंदर खाने कलह को अपनी हार का कारण बताया है । यह एक पक्ष है लेकिन क्या तहकीकात करने वाले दूसरा पक्ष भी देखकर निष्कर्ष निकालेंगे या फिर 400 पार के नारे की तरह ही हार के कारणों एवं जिम्मेदारों को चिन्हित कर फरमान जारी कर देंगे ।
ये बिल्कुल सही है कि फतेहपुर में भारतीय जनता पार्टी गुटबाजी का सदा ही बड़ा शिकार रही । नेता यहां दो धड़ों में नहीं बल्कि कई धड़ों में बंटे रहे । हर कद्दावर का अपना धड़ा रहा और वह अपने तरीके से ही राजनीतिक रोटियां सेंकता रहा । जिले में हार के लिए खासकर दो क्षत्रिय नेताओं पूर्व मंत्री रणवेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ धुन्नी सिंह,पूर्व विधायक विक्रम सिंह को बड़ा दोषी माना जा रहा है ।
यह बात सही है कि इन नेताओं का अपना वजूद है और अपने-अपने क्षेत्र में मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर इनकी अच्छी पकड़ है । इसके अलावा नगर पालिका परिषद के प्रत्याशी रहे दो अन्य नेताओं सहित चिन्हित एक दर्जन से अधिक भाजपाईयों की निष्ठा पर सवाल खड़े हो रहे हैं ?
अब इसका दूसरा पहलू यह है कि पूर्ण बहुमत की दूसरी बार सरकार बनाने वाली भाजपा के यही दो क्षत्रिय नेता अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव हार गए । जहां उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है इसके अलावा दो बार का नगर पालिका परिषद का चुनाव भी लाख प्रयासों के बावजूद भाजपा यहां जीत नहीं पाई । इसका ठीकरा तत्कालीन सांसद केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के सिर पर फूटा और हार के लिए उन्हें बड़ा कारण माना गया ।
भारतीय जनता पार्टी की गुटबाजी जग जाहिर है नेताओं की धड़ेबंदी उनके विचार एवं कार्य व्यौहार जुदा-जुदा हैं । निश्चित रूप से एकता किसी भी संगठन की मजबूती की बड़ी कुंजी है । लेकिन जिस तरह से लोकसभा का चुनावी परिणाम पूरे प्रदेश का सामने आया है उससे तो ऐसा नहीं लगता कि विरोध या गुटबाजी ने कोई बड़ा खेल किया है । हार-जीत का अंतर और कम हो सकता था लेकिन मतदाताओं ने जो मन बना लिया था और जिस मिजाज से बूथों तक जाकर उन्होंने मतदान किया उससे हार सुनिश्चित थी ।
वजह साफ है कि सत्ता के नशे में चूर भाजपा मतदाताओं के मिजाज को भांप ही नहीं पाई । हकीकत तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी मुद्दों से भटकी रही और आम आदमी अपनी मूलभूत समस्याओं,जरूरतों के लिए संघर्ष करता नजर आया । रोजी रोजगार का बड़ा संकट रहा । महंगाई, भ्रष्टाचार ऐसे मुद्दे रहे जिन्हें भाजपा ने कभी तवज्जो ही नहीं दिया । लोगों की समस्यायों एवं परेशानियों का निराकरण करने के बजाय पूर्ववर्ती सरकारों से तुलना कर ठीकरा उन पर भाजपाई फोड़ते रहे । मतों का जबरदस्त तरीके से ध्रुवीकरण हो गया । वोटों की शिफ्टिंग से बेखबर भाजपा एवं उसके समर्थक सोशल मीडिया में 400 पार के नारे की आवाज को बुलंद करते रह गए और विपक्षी भाजपा के परंपरागत मतों के बड़े हिस्से को दीमक की तरह के चट कर गए । भाजपा एवं उनके समर्थकों की सोशल मीडिया टीम अभी भी बेवजह की बातों में उलझी पड़ी है । हार की तह तक जाने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप मढ़े जा रहे हैं । भले ही फतेहपुर में साध्वी निरंजन ज्योति को हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन ये हालात तो पूरे उत्तर प्रदेश में रहे ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 7 लाख से अधिक मतों से जीत दिलाने का दम भरने वाले भाजपाई जीत के पिछले आंकड़े को ही छू नहीं पाए प्रधानमंत्री के जीत का आंकड़ा सवा तीन लाख मतों से 2019 के चुनाव से पीछे रह गया । यही हाल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई अन्य बड़े नेताओं का रहा । इतने मतों के ध्रुवीकरण हो जाने के चिंतन के बजाय भाजपा अभी भी गुटबाजी एवं पार्टी के गद्दारों को खोजने का काम कर रही है । नेतृत्व ने फरमान जारी कर दिया है । हो सकता है कुछ पर कार्रवाइयां भी हों लेकिन क्या यह कार्रवाइयां भाजपा की गुटबाजी एवं धड़ेबंदी को पाट कर जिले में एकता की नई पटकथा लिखने में कामयाब होंगी ?
ये तो समय बताएगा लेकिन मुद्दों से भटकी भाजपा ने अगर आम आदमी की पीड़ा एवं उसकी समस्या,महंगाई,भ्रष्टाचार,रोजगार को गंभीरता से नहीं लिया तो फिर आगे-आगे देखिए होता है क्या ?