रिपोर्ट – मानव कुमार
भिंडौरा/बांदा । भागवत कथा का पांचवा दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों और जानवरों को द्वापर युग में इंद्र देव के प्रकोप से बचाव के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर की सबकी रक्षा । तभी से इस पर्वत को पूजनीय माना गया है और हर साल विधि-विधानों के साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है ।
श्री विष्णु ने श्री कृष्ण के अवतार में भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को पृथ्वी पर अवतार लिया था । कृष्ण अपनी शरारत, रासलीला, धर्म के रक्षक के रूप में जानते हैं ।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि में,भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था । इस शुभ दिन को जन्माष्टमी कहा जाता है । मथुरा और वृंदावन में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बहुत भव्य होता है । भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का शक्तिशाली अवतार कहा जाता है । जो अन्याय और धर्म के शासन को समाप्त करने के लिए पृथ्वी पर आए थे । उत्तर भारत में दही हांडी तोड़ने की परंपरा है । जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर नन्हे बच्चे कान्हा के रूप में तैयार किया जाता है । जो अपने दोस्तों के साथ मक्खन चुराते हैं ।
आइए कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर बाल गोपाल कन्हैया के जीवन से जुड़ी माखन चोरी की बाल लीलाओं के बारे में बताते हैं । एक बार कन्हैया अपने पास राखी मटकी से माखन खाने लगते हैं । अचानक उन्हें अपनी मणिस्तम्भ में स्वयं का प्रतिबिंब दिखा ।
कान्हा को लगा कि कोई नन्हा शिशु चोरी से उनका माखन चुराने आया है । बाल गोपाल थोड़ा डर कर छोटा बच्चा समझ कर उसे प्रलोभन देते हुए कहते हैं, “अरे माखन चोरी के बारे में मैया से मत कहना । हम दोनों साथ में माखन चोरी करेंगे ।
मैं माखन कहा रहा हूं तुम भी मेरे बराबर माखन खा लो ।” कान्हा की आवाज सुनकर यशोदा मां जब बाहर आई और उन्होंने कन्हैया से पूछा कि तुम किससे बात कर रहे हो । तब कान्हा ने कहा, ‘पता नहीं मैया, घर में एक नन्हा बालक माखन चोरी करने आया है। मैं मना करता हूँ तो मानता नहीं हैं । मैं मुस्कुराता हूं तो यह भी मुस्कुराता है ।’ यशोदा मैया कान्हा की इस बाल लीला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हैं और अपने माखनचोर को गोद में उठा कर लाड़ लड़ाती हैं ।
कान्हा की दूसरी माखन चोरी की इस लीला में वे अपने ही घर में माखन चुरा रहे हैं । कन्हैया घुटनों के बल उस कमरे में प्रवेश कर जाते हैं जहां माखन रखा है और वहां रखी मटकी से माखन निकल के खाने लगे है । वह आनंद ले लेकर माखन खा रहे थे तभी मैया यशोदा अचानक से आ गई और कान्हा से पूछ लिया कि “तुम यहां क्या कर रहे हो । कान्हा बड़ी चतुराई से बोले मैया तूने जो मेरे हाथों में कंगन पहनाया है उसमें से आग निकाल रही है और उससे मेरा हाथ जल रहा है । इसीलिए मैंने माखन की मटकी में अपना हाथ डाल लिया । “मैया बोली, “अच्छा ये तो ठीक है । लेकिन तुम्हारे मुख पर माखन क्यों लगा है ?”
इस पर कन्हैया कुछ सोचते हुए कहते है, “मैया जब मैंने मटकी में हाथ दिया था तब मेरे मुख पर एक चींटी चली गई । और जब मैं उस चींटी को हटाने लगा तब मेरे मुख पर माखन लग गया ।” मैया यशोदा ने जब कान्हा के मुख से ऐसी मन मोहने वाली बातें सुनी तो सीने से लगा लिया ।
कान्हा की माखन चोरी की यह लीला आरंभ होती है चिकसोले वाली गोपी के यहां से । कन्हैया ने अपनी एक टोली तैयार की । इस टोली में सुबल, मंगल, सुमंगल, सुदामा, तोसन आदि शमिल हैं । इसको आप चोर मंडली भी कह सकते हैं । इस चोर मंडली के अध्यक्ष और कोई नहीं स्वयं कन्हैया थे एक बार की बात है कान्हा अपनी टोली के साथ तैयार हुए और योजना बनाई “चिकसोले वाली ” गोपी के घर माखन चोरी करने की । कन्हैया और उनकी टोली गोपी के घर पहुंचे कन्हैया ने गोपी के घर पहुँच कर अपने साथियों को छिपा दिया और स्वयं दरवाजे पर पहुँच कर जोर जोर से द्वार खटखटाने लगे । जब गोपी ने द्वार खोल तो कान्हा को खड़े देखकर पूछा, ” कान्हा, सवेरे-सवेरे यहां कैसे ?
कान्हा बोले, “मैया ने भेजा है कि चिकसोले वाली गोपी के घर जाओ । हमारे घर में कोई संत महात्मा आए हैं और अभी घर में ताज़ा माखन नहीं निकाला है । मैया ने कहा है कि आप भोर में उठकर माखन निकाल लेती हो तो एक मटकी माखन दे दो, बदले में दो मटकी माखन लौटा दूँगी ।”
गोपी बोली – कान्हा मैया से कह देना कि लौटाने की जरुरत नहीं है संतो की सेवा मेरी तरफ से हो जाएगी । गोपी झट से अंदर गयी और माखन की मटकी के साथ कान्हा को मिश्री भी दी । कान्हा की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी । वह माखन लेकर बाहर आए और जैसे ही गोपी ने द्वार बंद किए कान्हा ने अपने सभी दोस्तों को बुलाया और कहा जिसके यहां चोरी की है । उसके दरवाजे पर बैठ कर खाने में एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है और फिर यह चोरी नहीं कहलाती ।” इतना कहते ही सब चिकसोले वाली गोपी के दरवाजे के बाहर बैठ गए । सभी सखा माखन और मिश्री खाने लगे । माखन मिश्री के खाने की आवाज जब गोपी के कानों में पड़ी तब उन्हें लगा कहीं घर में बंदर तो नहीं आ गए । गोपी ने जैसे ही दरवाजा खोला उन्हें कान्हा अपनी मित्र मंडली के साथ माखन खाते दिखे । उन्हें देखते ही जैसे ही गोपी उन्हें डंडे से मारने के लिए दौड़ी कान्हा बोले बहुत हुआ माखन खाना अब जल्दी से भागोसभी अपने-अपने घर को । कान्हा के इतना कहते ही ऊरई टोली सरपट भागी और चिकसोली वाली गोपी उन सभी को मुंह बाये देखती रह गई ।
इस अवसर पर आयुष ग्राम गुरुकुलम से गुरुमाता, प्रबंधक वेदप्रकाश वाजपेई,प्रधानाचार्य सीमा विश्वकर्मा,शिव अवतार शर्मा,राम बाबू शर्मा ,राजा भाईया अजयगढ़,गंगासागर शास्त्री आदि सैकड़ों लोग उपस्थिति रहे अंत में फूलचंद्र शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया ।