
फतेहपुर : बड़ी धूमधाम से गुरु गोविन्द सिंह का 356वां प्रकाश पर्व मनाया गया ।
सिखों के दसवे गुरु गुरु गोविन्द सिंह का प्रकाश पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ गुरुद्वारा सिंह सभा फतेहपुर में मनाया गया ज्ञानी ने बताया श्री गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु हैं । इनका जन्म पौष सुदी सातवी वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ । उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे । उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया । 1670 में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया । मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया ।
चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब कहलता है । यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई । उन्होंने फारसी,संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा । गोविन्द राय जी नित्य प्रति आनदपुर साहब में आध्यात्मिक आनन्द बाँटते,मानव मात्र में नैतिकता,निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का सन्देश देते थे । आनन्दपुर वस्तुतः आनन्दधाम ही था । यहाँ पर सभी लोग वर्ण,रंग,जाति,सम्प्रदाय के भेदभाव के बिना समता,समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे ।
गुरु गोविन्द सिंह जी शान्ति,क्षमा,सहनशीलता की मूर्ति थे । काश्मीरी पण्डितों का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाये जाने के विरुद्ध फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आये और कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है कि है कोई ऐसा महापुरुष जो इस्लाम स्वीकार नहीं कर अपना बलिदान दे सके तो आप सब का भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा । उस समय गुरु गोबिन्द सिंह जी नौ साल के थे । उन्होंने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ।
कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुन उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया । इसके पश्चात वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए । 10वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही । शिक्षा के अन्तर्गत उन्होनें लिखना-पढ़ना,घुड़सवारी तथा सैन्य कौशल सीखे 1684 में उन्होने चण्डी दी वार की रचना की । 1685 तक वह यमुना नदी के किनारे पाओंटा साहिब नामक स्थान पर रहे । सिखों के 10वें गुरु,गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना साहिब में हुआ था जहां उनकी याद में एक खूबसूरत गुरुद्वारा भी निर्मित किया गया है । गुरु गोविंद सिंह जी ने सन् 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी । उन्होंने ही गुरुग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया । गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा सचाई के रास्ते पर चलकर जीवन जीने के लिए दिए गए उपदेश आज भी प्रासंगिक है । इसके साथ ही आप धर्म, संस्कृति और देश की आन-बान और शान के लिए पूरा परिवार कुर्बान करके नांदेड में अबचल नगर (श्री हुजूर साहिब) में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं- ‘आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयो पंथ,सब सिक्खन को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रंथ ।’
गुरु गोबिंद सिंह ने 42 वर्ष तक जुल्म के खिलाफ डटकर मुकाबला करते हुए सन् 1708 को नांदेड में ही सचखंड गमन कर दिया ।
इस अवसर पर जिलाधिकारी अपूर्वा दुबे जी का आगमन हुआ और पंगत में बैठ के जिलाधिकारी महोदया जी ने लंगर का स्वाद छका ।
गुरु गोविन्द सिंह जी के 356वे प्रकाश पर्व के अवसर में सभी संगत ने गुरूद्वारा साहिब में सबद कीर्तन का आनंद लिया इसके बाद सभी भक्तों ने लंगर छका,सारा कार्यक्रम गुरुद्वारा सिंह सभा फतेहपुर के प्रधान पपिन्दर सिंह जी की अगुवाई में हुआ ।
गुरूद्वारा में लाभ सिंह,जतिंदर पाल सिंह,नरिंदर सिंह रिक्की, सरनपल सिंह,सतपाल सिंह,गोविंद सिंह,वरिंदर सिंह,कुलजीत सिंह,संत सिंह,गुरमीत सिंह,रिंकू,सोनी आदि उपस्थित रहे ।महिलाओ हरविंदर कौर,मंजीत कौर,हरजीत कौर,जसवीर कौर ,गुरप्रीत कौर,हरमीत कौर,प्रभजीत कौर,ज्योति मालिक , गुरशरण कौर,ईशर कौर,रीता,इंदरजीत कौर,जसप्रीत कौर, तरनजीत कौर, नीना ,खुशी, वीर सिंह,प्रभजस आदि भक्त जन उपस्थित रहे ।