
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि कोरोना वायरस ऐसी आग है जो दुनिया के किसी भी कोने में रहेगी तो पूरे विश्व को अपने चपेट में ले सकती है ।
अभी दुनिया के दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत कोरोना महामारी की त्रासदी में इस तरह जकड़ा हुआ है कि हर दिनों लाखों नए लोग संक्रमित हो रहे हैं और हज़ारों लोग मर रहे हैं ।
देश के कई हिस्सों में मजबूरी में संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन लगाना पड़ा है और इसका सीधा असर भारत समेत दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है ।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार सोमवार को भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण तेल की मांग प्रभावित होने के डर से कच्चे तेल की क़ीमत में क़रीब एक फ़ीसदी की गिरावट रही ।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है । सोमवार को ब्रेंट क्रूड 1.4 फ़ीसदी की गिरावट 65.22 डॉलर प्रति बैरल बिका और यूएस वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट यानी WTI तेल में भी 1.4 फ़ीसदी की गिरावट रही । WTI की क़ीमत 61.27 प्रति बैरल रही । पिछले हफ़्ते भी दोनों बेंचमार्क में एक फ़ीसदी की गिरावट थी ।
रॉयटर्स से कॉमर्ज़बैंक एनलिस्ट यूजेन विनबर्ग ने कहा, ”भारत और जापान से बुरी ख़बर आ रही और इसका सीधा असर तेल बज़ार पर पड़ रहा है । दोनों देशों में कोरोना संक्रमण बढ़ रहे हैं और फिर से संपूर्ण लॉकडाउन की स्थिति बन रही है ।
भारत में तो पिछले चार दिनों से हर दिन संक्रमण के नए मामले तीन लाख से ऊपर आ रहे हैं । कहा जा रहा है कि मई के दूसरे हफ़्तों में भारत में रोज़ाना संक्रमण के नए मामले आठ लाख तक जाएंगे । भारत के अस्पताल पहले से ही भरे हुए हैं और कोरोना मरीज़ इलाज और ऑक्सीजन के बिना दम तोड़ रहे हैं ।
कंसल्टेंसी एफ़जीई विशेषज्ञों का कहना है है कि भारत में गैसोलीन की मांग में हर दिन अप्रैल महीने में एक लाख बैरल की कमी आई है और मई में एक लाख, 70 हज़ार बैरल की कमी आ सकती है ।
भारत में मार्च महीने में हर दिन 747,000 बैरल गैसोलीन की ख़रीदारी हो रही थी ।
एफजीई का कहना है कि भारत में हर दिन डीज़ल की मांग 10.75 लाख बैरल है लेकिन कोरोना के कारण अप्रैल महीने में हर दिन 220,000 की गिरावट आ सकती है और मई महीने में यह गिरावट 400,000 तक पहुँच जाएगी ।
उधर जापान में भी कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण रविवार को टोक्यो और ओसाका में इमर्जेंसी लगाई गई है । रॉयटर्स के अनुसार इस हफ़्ते तेल उत्पादक देश और रूस के नेतृत्व वाले ओपेक प्लस बैठक करने वाले हैं । कहा जा रहा है कि तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और ओपेक प्लस उत्पादन में कटौती का फ़ैसला ले सकते हैं ताकि क़ीमतें स्थिर रहें ।