
स्वतंत्र पत्रकार – अरुण द्विवेदी
नोनारा तहसीलदार हत्याकांड : 26 फरवरी 1931 को फतेहपुर जिले के नोनारा गाॅव में स्वराजवादियों और तत्कालीन प्रशासन के बीच भीषण संघर्ष हुआ था जो स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानी इतिहास का अविस्मरणीय अध्याय बन कर आज भी लोगों की जुबान पर है । नोनारा में उस दिन क्रूर तहसीलदार के इशारे पर चली गोली से स्वराजवादी शिवनारायण तिवारी की मौत से उपजे आक्रोश ने इतना विकराल रुप ले लिया कि उत्तेजित लोगों ने मौके पर तहसीलदार को ही मौत के घाट उतार दिया बाद में प्रशासन और जमींदार के गुुर्गों ने मिलकर नोनारा को बुरी तरह तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । गिरफ्तार ग्रामीणों में एक को फाॅसी और कुल सत्रह लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुयी ।
नोनारा ग्राम जिला मुख्यालयफतेहपुर से पैंसठ किमी पश्चिम पर स्थित है और आज भी जहानाबाद थानान्तर्गत है । यहाॅ सौ वर्ष पूर्व नोनियाॅ जाति के लोग रहते थे जो कहीं अन्यत्र चले गये । कुर्मियों,ब्राम्हणों के अलावा कई अन्यजातियों के लोग आज भी यहाॅ हैं । उ0प्र0 काॅग्रेस कमेटी के आवाह्न पर चलाये गये लगानबंदी आन्दोलन से यह गाॅव भी अछूता नहीं था । यहाॅ के किसानों ने भी लगान न देने का फैसला किया था । वर्ष 1958 में बिन्दकी स्थानांतरित होने से पूर्व तहसील मुख्यालय खजुहा था और नोनारा की लगान वसूली कोड़ा जहानाबाद निवासी जमींदार मोहम्मद इब्राहीम के जिम्मे थी । जब मोहम्मद इब्राहीम नोनारा से लगान वसूलने में असफल रहा तो 26 फरवरी 1931 को अपने भतीजे मोहम्मद फारुख व कई लठैतों को लेकर नोनारा से एक मील दूर स्थित ग्राम बुढ़वां में कैम्प डाले पड़े तत्कालीन तहसीलदार खजुहा अवध बिहारी लाल श्रीवास्तव के पास पहॅुचा और नोनारा के किसानों द्वारा लगान न देने की बाबत सारा वाकया नमक मिर्च लगाकर कुछ इस तरह बताया कि तहसीलदार ने किसानों का दिमाग ठिकाने लगाने के लिये सिपाहियों,पटवारी,सईस और जमींदार को लेकर नोनारा जा धमका । उसे क्या पता था कि वह शाम ऐतिहासिक बन जायेगी और आजादी के लिये किये जा रहे आन्दोलनों की कड़ी में मील का पत्थर बन जायेगी ।
तहसीलदार नोनारा पहॅुचा और वहाॅ के एक सजायाफ्ता व्यक्ति हुसैनी बेहना के दरवाजे पर चारपाई डालकर बैठ गया । उसने इस गाॅव के पटवारी छोटेलाल कायस्थ को भेजकर गाॅव के किसानों को बुलवाया जहाॅ छोटेलालउत्तम,भवानीदीन,लक्ष्मी नारायण,सत्यनारायण तिवारी वगैरा सबसे पहले पहॅुचे । लगान माॅगे जाने पर ग्रामीणों ने स्पष्ट जवाब दिया कि ’स्वराज आ गया है, हम लगान नहीं देंगे’। मद में चूर तहसीलदार यह सुनकर आग बबूला हो उठा और उसने ग्रामीण किसानों से अभद्रता प्रारम्भ कर दी । जब गाॅव वालों को इसकी जानकारी मिली तो वह भी मौके पर पहॅुचने लगे ।
नोनारा के शिवनारायण तिवारी जैसे तमाम जुझारु लोग भी वहाॅ पहॅुच गये । जब तहसीलदार के हुक्म पर किसानों पर लाठियाॅ बरसनी शुरु हो गयीं तो किसानों का धैर्य भी टूट गया।स्वराजवादियों की अहिंसा ने भी हिंसा अख्तियार कर ली और वह भी आक्रामक हो गये,घरों की महिलाओं ने पथराव शुरु कर दिया । जहां स्थिति को अत्यन्त नाजुक देख बर्बर तहसीलदार ने गोली चलाने का हुक्म दे दिया । जिसमें पुलिस की गोली से शिवनारायणतिवारी,बद्री कुर्मी व जागेश्वर घायल हो गये । उन्हें गोली से घायल देख ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर पहॅुच गया और उन्होने तहसीलदार को लक्ष्य कर हमला बोल दिया । तहसीलदार घोड़ी में सवार होकर भागने लगा लेकिन स्वराजवादियों ने उसे एक अरहर के खेत में घेरकर लाठी डन्डों से मार डाला । तहसीलदार के साथ गये लोग शाम के धंुधलके का फायदा उठाकर इधर उधर भाग कर बचने में सफल रहे । पुलिस की गोली से घायल शिवनारायण तिवारी की भी मौत हो गयी ।
उधर तहसीलदार का बदहवास सईस घोड़ी लेकर बुढवाॅ की तरफ भगा जहाॅ रास्ते में उसे डिप्टी इंसपेक्टर आफ स्कूल बनवारीलाल सक्सेना मिला । वह बुढ़वाॅ से परिषदीय स्कूल का निरीक्षण कर वापस लौट रहा था । सईस ने तहसीलदार हत्याकांड का पूरा विवरण उसे दिया तो बनवारी लाल सीधे थाना जहानाबाद पहॅुचा और उसने प्राथमिकी कुछ यॅू दर्ज कराई – “बगरज मुआयना स्कूल मौजा बुढ़वाॅ गया हुआ था, वापिस आ रहा था । तहसीलदार खजुहा का सईस घोड़ी लिये हुये मिला और जाहिर किया कि नोनारा में गोली चल गयी और तहसीलदार मारे गये हैं । घोड़ी की काठी टूटी हुई थी, रास्ते में कुछ लोगों ने भी मुझको रोका मगर मैं भागता हुआ यहाॅ तक आया हॅू ।’’
इस सूचना के बाद तो समूचे प्रशासन तंत्र में हड़कम्प मच गया । थाना जहानाबाद का दरोगा जहीर हुसैन दल- बल सहित नोनारा पहॅुचा और कई दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर लिया,जिसमें तमाम अवयस्क लड़के भी थे । रामनारायण,छेद्दू वगैरा को पकड़कर उनके घरों की तलाशी ली और काॅग्रेस के झण्डे बैनर आदि बरामद किये । इस घटना के बाद पुलिस व जमींदार के गुर्गों ने नोनारा में जो कहर बरपाया उसकी एकतस्बीर नोनारा गाॅव की महिलाओं द्वारा 23 मार्च 1931 को कमिश्नर को दिये गये एक शिकायतीपत्र से स्पष्ट होती है जिसमें पुलिस,जमींदार और उसके गुर्गों द्वारा समूचे गाॅव में की गयी लूटपाट व महिलाओं के साथ की गयी बेहुरमती और अभद्रता का विस्तृत वर्णन है ।
इस घटना की विवेचना सर्किल इंसपेक्टर राम अनुग्रह सिंह द्वारा की गयी और प्रारम्भ में कुल 71 लोगों को गिरफ्तार कर चालान किया गया । 19 अभियुक्त तो शिनाख्त कार्यवाही में ही आरोप मुक्त हो गये । विवेचना के पश्चात सत्रह फरार और 34 गिरफतार लोगों के विरुद्ध आरोप – पत्र 9 अप्रैल 1931 को दाखिल की गयी इन अभियुक्तों के विरुद्ध स्पेशल मैजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी विशुन चन्द्र ने प्रारम्भिक सुनवाई कर मुकदमा सत्र न्यायालय में परीक्षण हेतु 23 मई 1931 को भेज दिया । इनका परीक्षण एस0टी0 नं0 15 सन् 1931 सरकार बनाम् रघुबर आदि के नाम से फतेहपुर के विशेष सत्र-न्यायाधीश पी0सी0 अग्रवाल की इजलास में प्रारम्भ हुआ । अभियोजन पक्ष ने 42 गवाहों को और अभियुक्तों की ओर से बचाव पक्ष में उनके वकील बाबू बंश गोपाल ने 7 गवाहों को पेश किया ।
परीक्षण के दौरान ही अभियुक्त लल्लू पुत्र बच्चू की मौत हो गयी। अदालत ने 7 सितम्बर 1931 को दिये अपने फैसले में चैदह अभियुक्तों को दोषमुक्त करार दिया और दुलारेलाल व छोटेलाल को प्राणदण्ड एवं अठारह अभियुक्तों भगौना,केदार नाथ,सत्य नारायण,बद्री,राम-नारायण,छेदुवा,श्यामलाल,रघुबीर ,भवानीदीन,भरोसा,खुशाली,रघु,द्वारिका,भगौती,पराग,लक्ष्मीनारायण,लकुवा,रामचरन को आजन्म कारावास की सजा सुनायी।दौरान सुनवाई जेल में मृत लल्लू को अदालत ने निर्दोष पाया।
इस निर्णय के विरुद्ध क्रिमिनल अपील संख्या 795 सन् 1931 छोटेलाल आदि बनाम केसरी हिन्द पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ग्रिमवुड व जस्टिस एस0एन0 सेन ने सुनवाई की । अभियुक्तों की पैरवी वकील कैलाशनाथ काटजू,एन0पी0गांगुली व बाबू बंशगोपाल ने की । उच्च न्यायालय ने 03 फरवरी 1932 को दिये गये अपने निर्णय में दुलारे लाल की फाॅसी की सजा को यथावत रखा किंतु छोटेलाल का मृत्युदण्ड आजीवन कारावास में बदल दिया । इसी तरह बद्री, भगौती, भगौना,द्वारिका,ललुआ,पराग और रघुबीर को दोष मुक्त कर शेष अपीलकर्ताओं की सजायें पूर्ववत् रखीं । चौबीस वर्षीय दुलारेलाल तिवारी अन्ततः नैनी जेल में फाॅसी पर झूल गया ।
जो सत्रह अभियुक्त प्रथम आरोप पत्र में फरार बताये गये थे उनमें कुछ के बाद में गिरफ्तार होने और शेष के आत्मसमर्पण करने पर कमिटल प्रोसीडिंग के लिये प्रथम श्रेणी मैजिस्ट्रेट मुरलीमनोहर की अदालत में प्रस्तुत किये गये जहाॅ 7 जून 1932 को पाॅच अभियुक्तों को दोष मुक्त करके शेष 12 अभियुक्तों दुर्गा,मिश्रीलाल,शुकदेव,गणेश,फद्दो,बंशी,बुद्धू,प्यारे लाल,भजन,हनुमान,छेद्दू व गिरधारी को परीक्षण हेतु सत्र न्यायालय भेजा गया । हाईकोर्ट के निर्देश पर अभियुक्तों का परीक्षण कानपुर के जिला जज चतुर बिहारी लाल के न्यायालय में (एस0टी0 न0 25 सन् 1032 केशरी हिन्द बनाम् हनुमान) आदि हुआ । जिसमें 14 अक्टूबर 1932 को दिये गये अपने निर्णय में सात अभियुक्तों को निर्दोष घोषित करते हुये शेष पाॅच अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा हुये । जिनमें प्यारे लाल,भजन,हनुमान,छेद्दू व गिरधारी थे । इन सभी ने उच्च न्यायालय में क्रिमिनल अपील संख्या 1084 सन् 1932 प्यारे लाल आदि बनाम् केसरीहिन्द दायर की जिसे 2 अक्टूबर 1933 को जस्टिस नियामत उल्ला व जस्टिस रक्षपाल सिंह ने निरस्त कर दिया और पाॅचों की सजायें बहाल रखीं ।
जय चंदों और मीरजाफरों की कमी हिन्दुस्तान में कभी नहीं रही । चाहे वह डा0 जोधासिंह अटैया सहित क्रांतिवीरों की गिरफतारी में एक दासी पुत्र मुखबिर की भूमिका रही हो अथवा जुलाई 1857 में बिलन्दा के पास अंग्रेज सेना और क्रांति कारियों के बीच हुये युद्ध के दौरान हसवा के मुन्नू लाल खत्री व बिलन्दा के मीर मुंशी आबिद अली की मुखबिरी हो, अंग्रेजपरस्तों की कभी कमी नहीं रही । ऐसी ही शर्मनाक स्थिति इस तहसीलदार हत्याकांड में भी रही ।
जिसमें हिन्दुस्तानियों ने ही पुलिस के साथ मिलकर हिन्दुस्तानियों को लूटा । लगभग पचासी वर्ष हो गये लेकिन नोनारा को लूटने वाले उन द्रेश द्रोहियों की बाबत किसी को जानकारी नहीं है ।
बहुचर्चित तहसीलदार हत्याकांड के बाद खुले प्रशासनिक संरक्षण में पुलिस एवं एक वर्ग विशेष के लोगों द्वारा नोनारा में कहर बरपाया गया था । वहाॅ जुल्म की इंतेहा हुयी थी ।नोनारा के ही हुसैनी नामक सजा याफ्ता व्यक्ति ने अपने लड़के खुदा बक्स चौकीदार सहित कोड़ा जहानाबाद और नोनारा के अराजकतत्वों के साथ मिलकर सामूहिक रुप से सितम ढाये थे ।
किन लोगों ने क्या कहर बरपाया इसका खुलासा तहसीलदार हत्याकांड के ठीक पचीस दिन बाद इलाहाबाद के तत्कालीन कमिश्नर को 23 मार्च 1931 को भुक्तभोगी महिलाओं द्वारा दिये गये एक प्रार्थनापत्र से होती है । सुधिया पत्नी देवीदयाल,मैकी पत्नी जोधा,मनिया पत्नी बदिया, कैलशिया पत्नी शिवनारायण,दुर्गा पत्नी छेद्दू व गंगू की पत्नी निवासी नोनारा ने इस पत्र में तहसीलदार हत्याकांड के पश्चात की गयी लूट व औरतों के साथ बेहुरमती को विवरण दिया था । उसे अंजाम देने वाले बर्बर अत्याचारियों के नाम भी दिये थे । इन लुटेरों की संख्या 62 थी जिनमें 47 लोग कोड़ा जहानाबाद के और 11 लोग नोनारा के व शेष अन्य स्थानों के थे इनमें चार पाॅच हिन्दू भी थे ।