
Sub Editor Amit Kumar ‘Dev’
KANPUR/UTTAR PRADESH । कहते हैं गुरु के बिना हर एक रण अधूरा है शिष्य गुरु के बिना पूरी तरह से अधूरा है लेकिन आज के समय में गुरु और शिष्य के बीच कहीं न कहीं जो दूरिया कायम है उस पर विचार करने की जरूरत है ।
आज के जीवन समय में गुरु-शिष्य परंपरा कायम रहेगी तो बढ़ता रहेगा देश और समाज ।
आज की पूर्व संध्या पर शिक्षक जगत ने गुरु-शिष्य परंपरा में आए उतार-चढ़ाव का जिक्र करते हुए बेहतर भविष्य की उम्मीद जतायी है । ज्ञान बांटने में शिक्षक बढ़-चढ़कर आगे आएं और विद्यार्थी भी इरादा बुलंद रखें कि ज्ञान का एक-एक कतरा आत्मसात कर लें । इसी अपेक्षा के साथ वर्तमान हालात में सुधार का संदेश दिया है ।
शिक्षाविदों का कहना है कि शिक्षा वास्तव में शिक्षक और विद्यार्थियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । शिक्षक ज्ञानी तो होते ही हैं, साथ में दिव्य दृष्टि और अनुभवी व्यक्ति भी होते हैं । लोग,समाज और राष्ट्र के आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक विकास शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है । यह केवल शिक्षक के अध्यापन के बल पर ही आ सकता है । देश में कई ऐसे महान शिक्षक हुए । जिन्होंनें अपने आपको आने वाले शिक्षकों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने हैं । यह सिलसिला चलते रहना चाहिए ।
#Kanpur "व्यक्तित्व प्रबंधन में गुरु शिष्य परंपरा का योगदान" पर Online Webinar के माध्यम से आयोजित सेमिनार हुआ सम्पन्न
-विद्यार्थियों को संस्कार युक्त रोजागारोन्मुखी शिक्षा आवश्यक- प्रो. योगेश चंद्र दुबे@narendramodi @Philosophy_DQ @CSJM_University @UoA_Official #Philosophy pic.twitter.com/xVwAiDpE1i— Journalist Amit kumar 'देव' (@AmitKum995) March 27, 2022
“भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है । बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है । यही क्रम चलता जाता है । यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है ।”
https://twitter.com/bolti_khabre/status/1508103897340321795?t=uQ4yaN_bgSeAmckGZXsuYA&s=19
दयानन्द शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित डी०ए-वी० कालेज, कानपुर के दर्शनशास्त्र विभाग एवं छात्र शिकायत निवारण प्रकोष्ठ ने संयुक्त रूप से आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के तत्वाधान में डॉक्टर नागेंद्र स्वरूप मेमोरियल राष्ट्रीय वेबिनार आज “व्यक्तित्व प्रबंधन में गुरु शिष्य परंपरा का योगदान” विषय पर आयोजित किया गया ।
इस अवसर पर ऑनलाइन संस्थान की सचिव कुमकुम स्वरूप, संयुक्त सचिव इंजीनियर गौरवेंद्र स्वरूप,महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 अरुण कुमार दीक्षित,चिन्मय मिशन से स्वामी गंगेशानंद सरस्वती महाराज ,पूज्य श्री प्रेम भूषण जी महाराज ,गुरुकुल कांगनी विश्वविद्यालय हरिद्वार के दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो० विजय पाल शास्त्री,इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो० जटाशंकर, प्रो० जे० एन० मिश्र पूर्व प्रधानाचार्य DHEMPE पणजी कॉलेज गोवा आदि विद्वानों ने Online Webinar में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की,और अपने अपने बहुमूल्य वक्तव्य से समाज में गुरु शिष्य परम्परा विषय पर समाज का मार्गदर्शन किया ।
चित्रकूट विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश चंद्र दुबे ने अपने सम्बोधन में कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पाठ्य क्रम में शिक्षा के साथ साथ व्यक्तित्व निर्माण पर विशेष बल दिया जाना चाहिएं । उन्होंने गुरुजनों को संदेश दिया कि वो अपने विद्यार्थियों को संस्कार युक्त रोजगारोन्मुखी शिक्षा देने में अपनी अहम भूमिका निभाएं ।
विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ0 रंजय प्रताप सिंह ने महाभारत के अनुशासन पर्व का उद्धरण देते हुए स्पष्ट किया कि जो आचरण अपने लिए प्रतिकूल हो,उसका प्रयोग दूसरे के साथ नहीं करना चाहिए । यही व्यक्तित्व प्रबंधन की कुंजी है ।
चिन्मय मिशन के स्वामी गंगेशानंद जी ने कहा कि बालक का प्रथम गुरु उसकी माँ होती है, दूसरा गुरु पिता और फिर धर्म (कर्तव्य) के मार्ग पर चलने की शिक्षा-दीक्षा देने वाला ही उसका धर्म गुरु होता है । स्वामी जी ने गुरु और शिष्य की निकटता अर्थात गुरुकुल परंपरा वाली शिक्षा पर विशेष बल दिया ।
प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेम भूषण महराज ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के तीन गुरुओं की चर्चा की । शिक्षा हेतु गुरु वशिष्ठ,दीक्षा गुरु विस्वामित्र और आध्यात्मिक गुरु अगस्त्य ऋषि जी रहे । उन्होंने बताया कि व्यक्तित्व के प्रबंधन का ज्ञान गुरु कृपा के बिना संभव नहीं है । शदगुरु की कृपा से ही यह सम्भव हो सका कि भगवान राम ने एक विशाल वानरों की सेना के सफल प्रबंधन के परिणामस्वरूप महाबली,महाअहंकारी रावण का अंत करने में सफलता प्राप्त की ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो0 जटाशंकर जी ने अपने वक्तव्य में विद्यार्थियों को नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देने पर विशेष जोर दिया । उन्होंने बताया कि वह गुरु धन्य हो जाता है जिसे एक योग्य विद्यार्थी मिल जाता है । वैसे ही जैसे एक योग्य गुरु के मिल जाने पर एक शिष्य का भाग्योदय हो जाता है । सुकरात और प्लेटो,कौटिल्य और चंद्रगुप्त, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद जैसे आदर्श उदाहरण देकर उन्होंने गुरु और शिष्य परंपरा को सार्थक तरीके से परिभाषित किया ।
सम्मानित वक्ताओं का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर अरुण कुमार दीक्षित ने किया । आपने सर्वप्रथम स्व0 नागेंद्र स्वरूप के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की । सम्मानित अतिथि वक्ताओं का संछिप्त परिचय देते हुए उन्होंने बताया की गुरु शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति की धरोहर है ।
धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष एवं वेबिनॉर् संयोजक डॉ० रंजय प्रताप सिंह ने दिया ।
दर्शनशास्त्र विभाग के सदस्य डॉ० नितीश दुबे एवं वेबीनार आयोजक सचिव डॉ वेद प्रकाश शुक्ल ने सम्मानित वक्ताओं का परिचय प्रस्तुत किया एवं छात्र शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के सदस्य डॉ० नरेंद्र कुमार शुक्ल डॉ० उदय प्रताप सिंह एवं डॉक्टर आदेश गुप्ता वेबीनार में उपस्थित रहे ।
प्रेस से संबंधित कार्यों का संपादन महाविद्यालय के पीआरओ एवं सांख्यिकी विभागाध्यक्ष डॉ० आर बी तिवारी एवं वनस्पति विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० अमित रघुवंशी ने किया ।
कार्यक्रम का संचालन डॉ० स्वप्निल राज दुबे ने किया ।
तकनीकी सहायक के रूप में डॉ० ज्ञान गुप्ता,डॉ० सुरेंद्र प्रताप सिंह एवं उद्धव सुरेखा ने सहयोग किया ।
इस अवसर पर आशुतोष शुक्ला,ममता यादव,अनिमेष प्रताप सिंह,डॉ० प्रतिभा त्रिपाठी,डॉ० अर्चना मिश्रा, डॉ० अर्चना तिवारी आदि उपस्थित रहे ।