
1970 के दशक में जन्म नियंत्रण रणनीति के तहत नाया लिबथ के शरीर में कोइल फ़िट की गई थी ।
डेनमार्क और ग्रीनलैंड आधिकारिक तौर पर ऐतिहासिक जन्म नियंत्रण प्रणाली की प्रथा की दो साल लंबी जांच शुरू करने पर राज़ी हो गए हैं ।
डेनमार्क के डॉक्टरों पर आरोप हैं कि उन्होंने जनजातीय इनुइट ग्रीनलैंडर्स के साथ कई सालों तक इस प्रणाली का इस्तेमाल किया ।
1960 और 70 के दशक में हज़ारों इनुइट महिलाओं और लड़कियों में अंतर्गर्भाशयी डिवाइस (IUD) लगाई गई थीं जिसे आमतौर पर कोएल के नाम से भी जाना जाता है ।
इन गर्भनिरोधक डिवाइस को महिलाओं के गर्भाशय में लगाया गया था ताकि उन्हें गर्भवती होने से रोका जा सके ।
जिन महिलाओं और लड़कियों के गर्भ में इन IUD को लगाया गया था उनमें से एक नाया लिबथ भी हैं ।
यह 1970 के दशक की बात है, जब नाया तक़रीबन 13 साल की थीं तब उनसे एक डॉक्टर ने रूटीन स्कूल जांच परीक्षा के दौरान स्थानीय अस्पताल में जाने को कहा, जहाँ पर उनके गर्भाशय में कोएल डाल दी गई ।
वो कहती हैं,
“मुझे नहीं मालूम था कि यह क्या है और न ही मुझे इसके बारे में बताया गया था और न ही मुझसे इसकी अनुमति ली गई थी ।”
नाया उस समय ग्रीनलैंड के पश्चिमी तट के एक छोटे से शहर मानित्सॉक में रहती थीं ।
वो कहती हैं,
“मैं डरी हुई थी । मैं अपने परिजनों को भी नहीं बता सकी । मैं उस वक़्त कुंवारी थी । मैंने कभी लड़के को किस तक नहीं किया था ।”
नाया की उम्र अब 60 वर्ष है, वो उन लोगों में से हैं, जिन्होंने इसके ख़िलाफ़ सबसे पहले आवाज़ उठाई ।
“मैं याद कर सकती हूँ कि एक डॉक्टर सफ़ेद कोट में था और शायद वहाँ नर्स भी थी । जहाँ पर आप टांगें फैलाते हैं, वहाँ पर मैंने धातु की कोई चीज़ देखी । वो सब कुछ बहुत डरावना था । डॉक्टर जिन उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे थे वो मुझ जैसे बच्चे के शरीर के लिए बहुत बड़े थे । ऐसा लगा कि बड़े भारी चाकू मेरे अंदर डाल दिए गए हैं ।”
| मानित्सॉक शहर में अपने घर में युवावस्था में नाया ।
4,500 से अधिक महिलाओं को लगाई गई IUD
नाया कहती हैं कि उनके परिजनों की अनुमति नहीं ली गई थी और उनकी कुछ सहपाठियों को भी अस्पताल भेजा गया था लेकिन उन्होंने इसको लेकर बात नहीं की थी क्योंकि ‘यह बहुत चौंकाने वाला था ।’
उन्होंने फिर एक फ़ेसबुक ग्रुप बनाया, जिसमें महिलाएं अपने अनुभव साझा कर सकें और इस सदमे से निपटने के लिए एक-दूसरे की मदद कर सकें । इसमें 70 से अधिक महिलाएं शामिल हो चुकी हैं ।
स्पिग़ालकैंपेनियन (कोएल कैंपेन) नामक एक हालिया पॉडकास्ट में ऐसे रिकॉर्ड पाए गए जो बताते हैं कि ग्रीनलैंड में 1966 से 1970 के बीच 4,500 महिलाओं और लड़कियों में IUD या कोएल प्रत्यारोपित किए गए । यह प्रक्रिया 1970 के दशक के मध्य तक जारी रही ।
इन सब मामलों में यह साफ़ नहीं है कि इनमें से कितने मामलों में सहमति ली गई थी या नहीं या फिर इसके बारे में खुलकर बताया गया था ।
प्रभावितों में 12 साल की आयु तक की लड़कियां शामिल हैं, जिनमें से कइयों ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि उनको इसके बारे में सही तरह से सूचित नहीं किया गया था । कुछ महिलाएं बच्चे भी पैदा नहीं कर पाईं और इसके लिए वो कोएल को ज़िम्मेदार ठहराती हैं ।
नाया कहती हैं,
“कई महिलाओं ने मुझसे संपर्क किया । ऐसा लगता है कि जितनी युवावस्था में लड़कियों को यह कोएल लगाई गई इससे उनके साथ उतनी ही दिक़्क़्तें पैदा हुईं । यह बहुत दुखदायी है ।”
आनागुआक पॉल्सन जब 16 वर्ष की थीं तब उनके यह कोएल लगाई गई थी । हालांकि उस समय वो ग्रीनलैंड में नहीं बल्कि डेनमार्क की ज़मीन पर थीं । 1974 में वो ग्रीनलैंड के बच्चों के लिए बोनहोम में बनाए गए बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही थीं ।
आनागुआक पॉल्सन कहती हैं कि किशोरावस्था में कोएल लगाने के कारण उन्हें भारी दर्द सहना पड़ा ।
वो कहती हैं,
“प्रक्रिया से पहले उन्होंने मुझसे कुछ भी नहीं पूछा और मुझे कोई आइडिया नहीं था कि यह सब क्या है और कोएल क्या होती है ।”
वो साल में सिर्फ़ एक बार अपने घर जा सकती थीं और यह साफ़ है कि उनके परिजनों से कोई सलाह नहीं ली गई थी । आनागुआक उस दर्द के बारे में बताती हैं कि 17 साल की उम्र में जब एक साल बाद वो वापस अपने घर ग्रीनलैंड लौटीं तो उन्होंने कोएल हटा दी ।
रोते हुए 64 वर्षीय आनागुआक कहती हैं,
“मुझे लगता है कि उस समय मेरे पास कोई विकल्प नहीं था और मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।”
वो कहती हैं,
“ये अगर ग्रीनलैंड की जगह डेनिश महिलाएं होतीं तो लोग कैसी प्रतिक्रिया देंगे ?”
ग्रीनलैंड या डेनमार्क में जन्म नियंत्रण कार्यक्रम को लेकर बहुत कम जानकारी है और इसकी रिपोर्ट के कारण लोगों को धक्का लगा है, वहीं इससे आक्रोश भी बढ़ा है ।
डेनमार्क के स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से की गईं गर्भावस्था की रोकथाम प्रथाओं की अब एक कमिटी जांच करेगी ।
प्राधिकरण पर आरोप है कि 1960 से लेकर 1991 के बीच ग्रीनलैंड और डेनमार्क में ग्रीनलैंड के छात्रों के लिए बनाए गए स्कूलों में यह प्रक्रिया अपनाई गई थी ।
डेनमार्क का उपनिवेश था ग्रीनलैंड
ग्रीनलैंड की सरकार ने 1992 में डेनमार्क से स्वास्थ्य नीति को अपने पास ले लिया था ।
डेनमार्क के स्वास्थ्य मंत्री माउनुस ह्यूनिके ने बयान जारी किया है जिसमें उन्होंने कहा कि जांच से पता चलेगा कि इस तरह की प्रथा किन फ़ैसलों के कारण शुरू की गई और यह कैसे हुई ।
उन्होंने बताया कि उन्होंने कई प्रभावित महिलाओं से मुलाक़ात की है ।
उन्होंने कहा,
“शारीरिक और भावनात्मक तौर पर पीड़ा आज भी महसूस की जा रही है ।”
ग्रीनलैंड डेनमार्क का उपनिवेश था और 1953 में उसने एक देश का रूप लिया ।
इसके बाद व्यापक आधुनिकीकरण योजनाएं आईं जिससे बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और रहने की स्थिति की शुरुआत हुई । जीवन प्रत्याशा बढ़ी और शिशु मृत्यु दर में कमी आई ।
| एक आधुनिक अंतर्गर्भाशयी डिवाइस (IUD) जिसे आमतौर पर कोएल भी कहा जाता है, इसे गर्भावस्था रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है ।
कई लोग इस प्रक्रिया का करते हैं समर्थन
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के इतिहासकार सोएरेन रड कहते हैं कि इससे दूसरी चुनौतियां खड़ी हुईं और ग्रीनलैंड की छोटी से आबादी में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है और 1970 में यह लगभग दोगुनी हो गई ।
रड का मानना है कि कोएल को आंशिक तौर पर वित्तीय ज़रूरतों के कारण लाया गया था लेकिन यह औपनिवेशिक दृष्टिकोण का परिणाम भी था ।
वो कहते हैं,
“इसकी ख़ास दिलचस्पी बढ़ती जनसंख्या को सीमित करना था और साथ ही घर मुहैया कराने और सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं की चुनौतियों से निपटना भी था ।”
युवा सिंगल मदर्स का उच्च अनुपात भी एक दूसरी चिंता का विषय था, यह उनको परिवार नियोजन के लिए प्रेरित करता था ।
रड कहते हैं कि कई जर्नल्स में डॉक्टरों ने कोएल की प्रक्रिया के बारे में लिखा है और इसे सफल बताया है । रिकॉर्ड बताते हैं कि जन्म दर कुछ ही सालों में आधी हो गई ।
नूक की कैटरीन जैकबसन जब सिर्फ़ 12 साल की थीं तब उनके गर्भाशय में कोएल प्रत्यारोपित की गई थी । उनको याद है कि एक रिश्तेदार की गर्लफ़्रेंड 1974 में उन्हें डॉक्टर के पास लेकर गई थी ।
लगभग दो दशक तक उनके गर्भाशय में कोएल थी जिसकी वजह से उन्हें दर्द और कई दिक़्क़तें झेलनी पड़ीं । 30 साल की उम्र में उनके गर्भाशय को निकालना पड़ा ।
कैटरीन
वो कहती हैं,
“मेरी ज़िंदगी पर इसका बहुत बड़ा असर हुआ । मैंने इसके बारे में कभी किसी को नहीं बताया क्योंकि मुझे हमेशा लगता था कि यह सब सिर्फ़ मेरे साथ हुआ है ।”
आज की IUD एक छोटी सी रोमन अक्षर के टी जैसी डिवाइस है जो 1960 के दशक की शुरुआत में एस के आकार की थी और काफ़ी बड़ी थी ।
नूक के क्वीन इनरिड्स हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ एवियाया सीग्सटल कहती हैं,
“एक ऐसा गर्भाशय जो कभी गर्भवती नहीं हुआ उसमें इसके कारण बहुत ख़ून, बहुत दर्द होता है और साथ ही संक्रमण का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है ।”
1990 और 2000 के दशक में उनके और उनकी सहकर्मी का सामना ऐसे मरीज़ों से हुआ जो गर्भवती नहीं हो पा रही थीं और उन्हें मालूम नहीं था कि उनके गर्भाशय में कोएल है । वो कहती हैं कि यह बहुत बड़ी संख्या नहीं था लेकिन यह कोई आम बात नहीं थी ।
वो कहती हैं,
“कुछ मामलों में हमने उन महिलाओं में IUD पाए जिनमें गर्भपात के बाद ये उन्हें बिना बताए लगाए गए थे ।”
ग्रीनलैंड में डेनमार्क के अतीत पर छिड़ी बहस
ग्रीनलैंड के मानवाधिकार काउंसिल के मुताबिक़, इस मामले में परिवार के जीवन और निजता के समझौते का उल्लंघन हुआ है ।
काउंसिल की चेयरमैन किवियक लूस्टम कहती हैं, “हमें यह जानने के लिए इसकी जांच करने की आवश्यकता है कि क्या यह वास्तव में एक जनसंहार था । हम इस पर कोई ख़ाली रिपोर्ट नहीं चाहते हैं ।”
ग्रीनलैंड की स्वास्थ्य मंत्री मिमी कार्लसन कहती हैं कि इस जांच में ग्रीनलैंड को शामिल करने से गहराई तक यह पता चलेगा कि वास्तव में आख़िर क्या हुआ था ।
इसके कारण और भी विवाद डेनमार्क के ग्रीनलैंड के अतीत के संबंधों के साथ जुड़ गए हैं जो जांच के घेरे में हैं ।
मार्च में डेनमार्क ने माफ़ी मांगते हुए छह इनुइट लोगों को मुआवज़ा देने की घोषणा की थी । 1950 में एक सामाजिक प्रयोग के तहत इन लोगों को अपने परिवारों से छीनकर डेनमार्क भेजा गया था ।
गर्मियों में ग्रीनलैंड की संसद ने एक प्रस्ताव पर मतदान किया था जिसके तहत 1953 के बाद डेनमार्क के उपनिवेशवाद की जांच करने के लिए एक अलग आयोग बनेगा ।
जन्म नियंत्रण प्रक्रिया की प्रथा से जो महिलाएं प्रभावित हुईं उनके लिए परामर्श का प्रस्ताव दिया गया है लेकिन आनागुआक जैसे महिलाओं का मानना है कि इसके लिए मुआवज़ा मिलना चाहिए ।
वो कहती हैं,
“मैं जानती हूं कि कई महिलाएं हैं जिनके पास बच्चे नहीं हैं ।”